
#लातेहार #नेतरहाट_विवाद : ग्रामीणों ने कहा खेती योग्य भूमि पर सरकारी निर्माण से आजीविका पर पड़ेगा असर – प्रशासन को लिखा पत्र
- नेतरहाट के ग्रामीणों ने टेंट सिटी और यूको कॉटेज निर्माण हेतु भूमि देने से इंकार किया।
- ग्रामीणों ने लातेहार उपायुक्त को लिखे आवेदन में अपनी चिंता जताई।
- कहा कि प्रस्तावित भूमि खेती योग्य है और यही उनकी आजीविका का प्रमुख स्रोत है।
- किसानों ने आग्रह किया कि परियोजना के लिए किसी अन्य स्थान का चयन किया जाए।
- आवेदन पर राजीव किशन, गाजिन्द्र किसान, तेजनारायण किसान, संजय किसान, मांगता किसान सहित कई ग्रामीणों ने हस्ताक्षर किए।
लातेहार जिले के महुआडांड प्रखंड के अंतर्गत आने वाले नेतरहाट गांव के ग्रामीणों ने प्रशासन को पत्र लिखकर अपने क्षेत्र में टेंट सिटी और यूको कॉटेज निर्माण के लिए जमीन देने से साफ इंकार कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन द्वारा चयनित भूमि पूरी तरह खेती योग्य है और यह उनकी जीविका का आधार है। अगर इस पर सरकारी निर्माण कराया गया, तो उनकी खेती और जीवन-यापन पर सीधा असर पड़ेगा।
ग्रामीणों ने जताई आजीविका को लेकर चिंता
ग्रामीणों ने अपने आवेदन में बताया कि नेतरहाट क्षेत्र की जमीन न केवल उपजाऊ है, बल्कि यही स्थानीय समुदाय की आर्थिक रीढ़ भी है। उन्होंने कहा कि प्रशासन पर्यटन विकास के नाम पर खेती योग्य जमीन पर कब्जा न करे, क्योंकि इससे कृषि कार्य पूरी तरह बाधित हो जाएगा। ग्रामीणों ने यह भी स्पष्ट किया कि गांव के पास कोई खाली या बंजर भूमि उपलब्ध नहीं है, जहां इस तरह का निर्माण किया जा सके।
राजीव किशन ने कहा: “हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन खेती छोड़कर जिएंगे कैसे? हमारी जमीन ही हमारी रोजी-रोटी है।”
प्रशासन से अन्य स्थल चयन की अपील
आवेदन में ग्रामीणों ने आग्रह किया है कि टेंट सिटी और यूको कॉटेज जैसी पर्यटन परियोजनाओं के लिए किसी वैकल्पिक स्थान का चयन किया जाए। उन्होंने कहा कि यदि प्रशासन ने किसानों की जमीन पर निर्माण कराया, तो यह निर्णय ग्राम समाज की आजीविका और अस्तित्व दोनों पर भारी पड़ेगा। ग्रामीणों का कहना है कि वे सरकार के विकास प्रयासों का स्वागत करते हैं, परंतु खेतों पर कब्जा किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे।
किसान तेजनारायण ने कहा: “हम चाहते हैं कि नेतरहाट में पर्यटक आएं, विकास हो, लेकिन हमारी जमीन पर नहीं। प्रशासन को ऐसी जगह चुननी चाहिए जहां किसी की जीविका पर असर न पड़े।”
सामूहिक विरोध और एकजुटता
इस आवेदन पर ग्रामवासियों के सामूहिक हस्ताक्षर हैं। प्रमुख हस्ताक्षरकर्ताओं में राजीव किशन, गाजिन्द्र किसान, तेजनारायण किसान, गुलु किसान, संजय किसान, मांगता किसान सहित कई अन्य स्थानीय किसान शामिल हैं। सभी ने एक स्वर में कहा कि वे टूरिज्म डेवलपमेंट के विरोधी नहीं हैं, लेकिन अपनी खेती और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हैं।
प्रशासनिक स्थिति और आगे की दिशा
सूत्रों के अनुसार, प्रशासनिक स्तर पर आवेदन की प्राप्ति की पुष्टि हो चुकी है, और जल्द ही इस पर चर्चा की जाएगी। यह मामला स्थानीय स्तर पर विकास बनाम आजीविका की बहस को फिर से जीवित कर गया है। ग्रामीणों का रुख स्पष्ट है – वे किसी भी कीमत पर अपनी खेती योग्य जमीन नहीं छोड़ेंगे।



न्यूज़ देखो: विकास और आजीविका के बीच संतुलन की जरूरत
नेतरहाट की यह स्थिति झारखंड के कई ग्रामीण इलाकों में बढ़ती विकास बनाम जमीन विवादों की तस्वीर पेश करती है। जहां एक ओर सरकार पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अपने जीवन और खेती की सुरक्षा चाहते हैं। विकास तभी सार्थक है जब उसमें स्थानीय लोगों की सहमति और हितों की सुरक्षा शामिल हो।
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विकास का रास्ता सहभागिता से होकर गुजरता है
समाज और प्रशासन दोनों की जिम्मेदारी है कि विकास की योजनाएं स्थानीय जरूरतों और आजीविका के सम्मान के साथ आगे बढ़ें। ग्रामीणों की आवाज सुनना लोकतंत्र की मजबूती की निशानी है। अब समय है कि हम सभी सतर्क रहें, संवाद बढ़ाएं और संतुलित विकास की दिशा में कदम बढ़ाएं। अपनी राय साझा करें, इस खबर को दोस्तों तक पहुंचाएं और जनहित की इस बहस को मजबूत करें।




