
#विशुनपुरा #धान_खरीद : सरकारी खरीदी केंद्र शुरू न होने से किसान औने–पौने दाम पर धान बेचने को मजबूर—दर्जनों ट्रक धान रोज बाहर भेजा जा रहा
- विशुनपुरा प्रखंड में अब तक सरकारी धान खरीदी केंद्र चालू नहीं।
- किसान MSP के बजाय निजी व्यापारियों को बेचने पर विवश, 300–500 रुपये प्रति क्विंटल का घाटा।
- न पंजीकरण, न तिथि, न केंद्र सक्रिय—किसान दिनोंदिन संकटग्रस्त।
- विशुनपुरा व आसपास से दर्जनों ट्रक धान रोज दूसरे राज्यों को भेजा जा रहा।
- किसानों का आरोप—अफसर नदारद, विभाग चुप, नुकसान की जिम्मेदारी कौन लेगा?
विशुनपुरा, गढ़वा।
विशुनपुरा प्रखंड में सरकारी धान खरीदी केंद्रों के शुरू न होने से किसान आज गहरे संकट में हैं। खेत से लेकर मंडी तक उम्मीद की राह देख रहे किसानों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि MSP पर खरीद अभी तक शुरू नहीं हुई है। किसान मजबूरी में अपने धान को निजी व्यापारियों को औने–पौने दाम पर बेच रहे हैं, जिससे वे अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे।
स्थिति यह है कि खेत से उपज निकालने से लेकर बाजार तक पहुंचने की हर कोशिश के बाद भी किसानों की मेहनत का सही मूल्य उन्हें नहीं मिल रहा है। कृषि इनपुट—खाद, बीज, कीटनाशक, सिंचाई और मजदूरी—की बढ़ती लागत के बीच MSP किसानों के लिए राहत का साधन होता, पर सरकारी तंत्र की उदासीनता ने उनकी कमर तोड़ दी है।
खरीद केंद्र बंद—किसानों पर डबल मार
किसानों का कहना है कि सरकार ने समर्थन मूल्य घोषित कर दिया है, लेकिन स्थानीय विभाग ने खरीदी की पूरी प्रक्रिया को रोक रखा है।
न धान खरीदी केंद्र खुले हैं, न पंजीकरण शुरू हुआ, न ही खरीदी की तिथि घोषित हुई है।
किसानों के अनुसार,
“MSP मिलने पर हमें नुकसान नहीं होता, लेकिन निजी व्यापारी मनमाने रेट पर खरीद रहे हैं।”
कई किसानों का दावा है कि प्रति क्विंटल 300 से 500 रुपये तक का घाटा उठाना पड़ रहा है।
रोज दर्जनों ट्रक धान बाहर भेजा जा रहा
इस बीच विशुनपुरा और आसपास के गांवों से हर दिन कई ट्रक धान दूसरे राज्यों में भेजे जा रहे हैं।
किसानों की पीड़ा यह है कि
“अपने ही इलाके के धान को बाहर जाते देख रहे हैं, पर सही मूल्य नहीं मिल पा रहा।”
किसानों का सीधा आरोप है कि अगर सरकारी खरीदी केंद्र समय पर खुल जाते, तो उन्हें निजी व्यापारियों को कम दाम पर बेचने की मजबूरी नहीं होती।
किसानों का बड़ा सवाल—MSP तो घोषित, खरीद कब?
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी सरकार ने MSP घोषित कर दिया है, लेकिन जमीन पर स्थिति बिल्कुल उलट है।
किसानों ने सवाल उठाया कि—
“जब सरकार समर्थन मूल्य देती है, तो खरीदी में इतनी देरी क्यों? आखिर हमारे नुकसान की भरपाई कौन करेगा?”
विभागीय स्तर पर कोई स्पष्ट बयान नहीं है। किसान इंतजार कर रहे हैं कि कब सरकारी केंद्र खुलेंगे, पंजीकरण शुरू होगा और उन्हें उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिलेगा।
फिलहाल विभागीय चुप्पी जारी है और इसी चुप्पी के बीच प्रखंड से किसानों का धान रोजाना बाहर जाता जा रहा है, जबकि स्थानीय किसान आर्थिक नुकसान झेलते हुए असहाय महसूस कर रहे हैं।
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विशुनपुरा की स्थिति बताती है कि योजनाएं घोषणा से नहीं, जमीन पर क्रियान्वयन से सफल होती हैं। MSP घोषित होने के बावजूद अगर किसान औने–पौने दाम पर धान बेच रहे हैं, तो यह प्रशासनिक ढांचे की गंभीर नाकामी है। जरूरत है कि विभाग तत्काल खरीदी प्रक्रिया शुरू करे, ताकि किसानों का भरोसा टूटने से बच सके।
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