Simdega

रासलीला जीव और परमात्मा के शाश्वत प्रेम का प्रतीक, नृत्य मात्र नहीं: डॉ. रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज

#सिमडेगा #भागवत_कथा : छठे दिन रास, रुक्मिणी विवाह और उद्धव प्रसंग से भक्तिरस में डूबा कथा पंडाल।

सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन श्रद्धालु भक्ति और प्रेम के रस में सराबोर नजर आए। व्यासपीठ से डॉ. रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने रासलीला, रुक्मिणी विवाह और उद्धव प्रसंग का भावपूर्ण वर्णन किया। कथा में भक्ति, वैराग्य और निष्काम प्रेम का गूढ़ संदेश दिया गया। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने आयोजन को आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान की।

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  • डॉ. रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने व्यासपीठ से दिया भावपूर्ण प्रवचन।
  • रासलीला को जीव और परमात्मा के शाश्वत प्रेम का प्रतीक बताया।
  • रुक्मिणी विवाह से धर्म, प्रेम और विश्वास का संदेश।
  • उद्धव प्रसंग में ज्ञान से ऊपर भक्ति की महत्ता प्रतिपादित।
  • मुख्य यजमान डॉ. प्रह्लाद मिश्रा सपत्नीक रहे उपस्थित।
  • भजन, कीर्तन और हरिनाम से पूरा कथा स्थल भक्तिमय।

सिमडेगा जिले के बानो क्षेत्र में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन का दृश्य अत्यंत भावविभोर कर देने वाला रहा। कथा स्थल पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ी, वैसे-वैसे वातावरण में भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह स्पष्ट रूप से महसूस किया गया। व्यासपीठ से डॉ. रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने रासलीला, रुक्मिणी विवाह और उद्धव प्रसंग का विस्तारपूर्वक वर्णन कर श्रद्धालुओं को भक्ति के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराया।

रासलीला का आध्यात्मिक अर्थ

डॉ. रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने रासलीला प्रसंग पर प्रवचन करते हुए स्पष्ट किया कि रासलीला को केवल नृत्य या मनोरंजन के रूप में देखना उसकी आध्यात्मिक गहराई को समझने में चूक है। उन्होंने कहा कि रासलीला जीव और परमात्मा के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है। गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण यह दर्शाता है कि जब भक्त अपने अहंकार और स्वार्थ का त्याग कर प्रभु में लीन हो जाता है, तब उसका जीवन पूर्णता को प्राप्त करता है।

उन्होंने समझाया कि रास का वास्तविक अर्थ अहंकार का विसर्जन और निष्काम भक्ति को अपनाना है। श्रीकृष्ण का प्रत्येक गोपी के साथ समान रूप से प्रकट होना इस सत्य को दर्शाता है कि ईश्वर किसी एक के नहीं, बल्कि हर उस हृदय के हैं, जो प्रेम और भक्ति से भरा हो।

रुक्मिणी विवाह से धर्म और विश्वास का संदेश

कथा के क्रम में महाराज जी ने रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुए बताया कि यह प्रसंग सच्ची भक्ति और अटूट विश्वास का अनुपम उदाहरण है। रुक्मिणी जी द्वारा श्रीकृष्ण को लिखा गया पत्र पूर्ण समर्पण का प्रतीक है, जिसमें उन्होंने स्वयं को प्रभु के चरणों में अर्पित कर दिया।

डॉ. रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने कहा कि श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी जी का विवाह कर अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित करना यह सिखाता है कि जब भक्त पूरी निष्ठा से प्रभु पर भरोसा करता है, तो जीवन की सभी कठिनाइयां सहज रूप से समाप्त हो जाती हैं। यह प्रसंग आज के समाज को भी यह संदेश देता है कि प्रेम और धर्म के मार्ग पर चलकर ही जीवन में स्थायी सुख संभव है।

उद्धव प्रसंग और भक्ति की सर्वोच्चता

उद्धव प्रसंग का वर्णन करते हुए महाराज जी ने ज्ञान और भक्ति के अंतर को सरल शब्दों में समझाया। उन्होंने कहा कि उद्धव जी ज्ञान और विवेक के प्रतीक थे, लेकिन जब वे वृंदावन पहुंचे और गोपियों के प्रेम और विरह को देखा, तो उन्हें यह अनुभूति हुई कि केवल ज्ञान से नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति से ही परमात्मा की सच्ची प्राप्ति होती है।

गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति निष्काम प्रेम, जिसमें किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं था, मानव जीवन के लिए सर्वोच्च आदर्श है। महाराज जी ने बताया कि गोपियों की भक्ति इतनी पवित्र थी कि उद्धव जी स्वयं उनके चरणों की धूल को अपने मस्तक पर धारण करने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

यजमान और श्रद्धालुओं की सहभागिता

कथा के इस दिव्य अवसर पर मुख्य यजमान डॉ. प्रह्लाद मिश्रा सपत्नीक ने व्यासपीठ का विधिवत पूजन-अर्चन कर आयोजन को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई। कथा स्थल पर भजन-कीर्तन, जयकारों और हरिनाम संकीर्तन से वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया।

श्रद्धालुओं ने कथा के दौरान भावविभोर होकर भक्ति रस का आनंद लिया। रासलीला, रुक्मिणी विवाह और उद्धव प्रसंग की प्रस्तुति ने श्रोताओं के हृदय में भक्ति और वैराग्य की भावना को और प्रगाढ़ किया।

प्रमुख श्रद्धालुओं की उपस्थिति

इस अवसर पर अशोक तिवारी, बिनोद कश्यप, बिलु अग्रवाल, संतोष पाठक सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे। सभी ने कथा के माध्यम से प्राप्त आध्यात्मिक संदेश को अपने जीवन में उतारने का संकल्प व्यक्त किया।

न्यूज़ देखो: भक्ति से ही मिलती है जीवन की पूर्णता

श्रीमद्भागवत कथा का यह प्रसंग यह स्पष्ट करता है कि भक्ति केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक गहन प्रक्रिया है। रासलीला, रुक्मिणी विवाह और उद्धव प्रसंग के माध्यम से डॉ. रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने यह संदेश दिया कि प्रेम, समर्पण और निष्काम भक्ति ही मानव जीवन को सार्थक बनाती है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

भक्ति के मार्ग पर चलें, जीवन को सार्थक बनाएं

रासलीला का संदेश हमें अहंकार त्यागकर प्रेम अपनाने की प्रेरणा देता है।
रुक्मिणी और उद्धव प्रसंग सिखाते हैं कि ज्ञान से ऊपर भक्ति का स्थान है।
अपने जीवन में प्रेम, विश्वास और समर्पण को स्थान दें।
इस प्रेरक कथा पर अपनी राय साझा करें, लेख को आगे बढ़ाएं और भक्ति का संदेश अधिक लोगों तक पहुंचाएं।

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Shivnandan Baraik

बानो, सिमडेगा

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