
#महुआडांड़ #स्कूल_संकट : गंसा गांव के राजकीय उत्क्रमित विद्यालय तक सड़क न होने से बच्चे रोज़ाना जोखिम उठाकर पहुंचते हैं
- स्कूल तक जाने वाला रास्ता आज भी कच्चा और खतरनाक।
- बरसात में कीचड़, पानी भरने और फिसलन से हालात बदतर।
- बच्चे रोज़ाना जंगली जानवर, नाले और गड्ढों का सामना करते हैं।
- उपस्थिति लगातार घट रही, कई छात्र ड्रॉपआउट के कगार पर।
- ग्रामीणों द्वारा कई बार शिकायत, लेकिन प्रशासन का कोई ठोस कदम नहीं।
लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के गंसा गांव स्थित राजकीय उत्क्रमित विद्यालय तक पहुंचने का मार्ग आज भी विकास से अछूता है। घने जंगल और पहाड़ी इलाके के बीच बसे इस विद्यालय तक आज तक एक भी पक्की सड़क का निर्माण नहीं हुआ। नतीजा यह है कि स्कूल जाने वाले बच्चे रोज़ाना कीचड़, फिसलन, नालों और जंगली जानवरों के खतरे के बीच किसी तरह पढ़ाई जारी रखने को मजबूर हैं। बरसात के दिनों में यह समस्या और भी भयावह रूप ले लेती है, जब पूरा कच्चा रास्ता दलदल में बदल जाता है और बच्चों के गिरने, फिसलने और चोटिल होने की घटनाएं आम हो जाती हैं।
कीचड़, फिसलन और डर—बच्चों के लिए रोज़ की चुनौती
स्कूल तक जाने वाला रास्ता बरसात में पूरी तरह से कीचड़ में तब्दील हो जाता है। जगह-जगह पानी भर जाता है, जिससे बच्चों का पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है। फिसलन इतनी बढ़ जाती है कि बच्चे कई बार गिर जाते हैं, उनके कपड़े और किताबें खराब हो जाती हैं। साइकिल से स्कूल जाना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
कई बच्चों ने बताया कि रोज़ रास्ते में गिरना अब उन्हें सामान्य लगने लगा है। जंगल के रास्ते होने के कारण जंगली जानवरों का डर हमेशा बना रहता है। बरसाती नाले पार करते समय कई बच्चे भीग जाते हैं, जिससे बैग और कॉपियों का नुकसान होता है।
अभिभावकों की मजबूरी—डर के साथ भेजते हैं बच्चे
अभिभावक बताते हैं कि वे हर रोज़ चिंता और डर के साथ अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं। कई छोटे बच्चे नंगे पांव चलकर विद्यालय पहुंचते हैं। थकान और जोखिम के बावजूद वे पढ़ाई जारी रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हर बरसात में उपस्थिति आधी से भी कम हो जाती है।
स्थिति इतनी खराब है कि कुछ छात्र नियमित रूप से विद्यालय नहीं जा पा रहे और अब ड्रॉपआउट के खतरे में हैं। शिक्षक भी बताते हैं कि सड़क न होने से बच्चों की पढ़ाई पर गहरा असर पड़ रहा है।
सरकारी दावों की हकीकत उजागर
ग्रामीणों का कहना है कि सरकार “हर बच्चे को शिक्षा”, “स्कूल तक सड़क” और “डिजिटल एजुकेशन” जैसे बड़े-बड़े वादे करती है, लेकिन गंसा गांव के इस स्कूल की स्थिति इन दावों की पोल खोलती है। जब सुरक्षित रास्ता ही उपलब्ध नहीं है, तो शिक्षा की योजनाएँ केवल कागज़ों में सीमित होकर रह जाती हैं।
ग्रामीणों ने यह भी बताया कि वे कई बार प्रखंड कार्यालय और जिला प्रशासन को आवेदन दे चुके हैं। लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी कोई ठोस पहल नहीं हुई। बच्चों और ग्रामीणों की समस्या अब भी जस की तस बनी हुई है।
समाधान की उम्मीद कब?
गंसा गांव के लोग अब सड़क निर्माण की दिशा में वास्तविक कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और जंगल व पहाड़ी इलाका होने से यह मार्ग और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि प्रशासन जल्द ही सड़क निर्माण शुरू कराए, तो बच्चों की शिक्षा में नई ऊर्जा और सुरक्षा दोनों आएगी।
न्यूज़ देखो : शिक्षा तक पहुंचने वाली सड़क सबसे बड़ी नींव
ग्रामीण इलाकों में स्कूल तक सुरक्षित सड़क का न होना बच्चों की शिक्षा पर सीधा प्रभाव डालता है। गंसा गांव का यह मामला बताता है कि विकास से दूर बसे क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कितनी कमी है। प्रशासन को चाहिए कि ऐसे संवेदनशील मामलों में प्राथमिकता देते हुए त्वरित कार्रवाई करे, ताकि बच्चों की शिक्षा बाधित न हो और उनका भविष्य सुरक्षित हो सके।
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शिक्षा का अधिकार, सुरक्षित रास्ते से ही पूरा होगा
गांव के हर बच्चे को स्कूल तक सुरक्षित पहुंच मिलना आवश्यक है।
सड़क निर्माण जैसी बुनियादी सुविधाएँ सिर्फ विकास का हिस्सा नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य की नींव हैं।
समाज और सरकार दोनों को जिम्मेदारी लेकर ऐसे मामलों पर ध्यान देना चाहिए।
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