
#बरवाडीह #मनरेगा_घोटाला : रोजगार योजना में कंप्यूटर ऑपरेटर पर लाभुकों से पैसे मांगने का आरोप।
लातेहार जिले के बरवाडीह प्रखंड में मनरेगा योजना के क्रियान्वयन को लेकर गंभीर अनियमितताओं के आरोप सामने आए हैं। ग्रामीण लाभुकों ने डिमांड दर्ज करने और जॉब कार्ड से जुड़े कार्यों के बदले अवैध वसूली की शिकायत की है। आरोप है कि बिना पैसे दिए काम की मांग नहीं चढ़ाई जाती, जिससे गरीब परिवार रोजगार से वंचित हो रहे हैं। मामले ने प्रशासनिक व्यवस्था और योजना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
- मनरेगा योजना में डिमांड दर्ज करने के नाम पर अवैध वसूली का आरोप।
- कंप्यूटर ऑपरेटर पर लाभुकों से पैसे मांगने की शिकायत।
- राशि नहीं देने पर काम में देरी या डिमांड अस्वीकृत।
- गरीब और जरूरतमंद परिवारों को योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा।
- जिला परिषद सदस्य संतोषी शेखर ने उपायुक्त से शिकायत की बात कही।
बरवाडीह प्रखंड में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, जो ग्रामीण गरीबों को सौ दिन का सुनिश्चित रोजगार देने के उद्देश्य से लागू की गई है, आज खुद सवालों के घेरे में आ गई है। ग्रामीणों का आरोप है कि इस जनकल्याणकारी योजना को कुछ कर्मियों द्वारा निजी कमाई का जरिया बना लिया गया है, जिससे योजना का मूल उद्देश्य प्रभावित हो रहा है।
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, जब वे मनरेगा के तहत काम पाने के लिए पंचायत या प्रखंड कार्यालय पहुंचते हैं, तो उनसे डिमांड चढ़ाने, जॉब कार्ड अपडेट करने या अन्य तकनीकी प्रक्रियाओं के नाम पर पैसे मांगे जाते हैं। कई लाभुकों ने बताया कि पैसे नहीं देने की स्थिति में न तो उनकी मांग ऑनलाइन दर्ज की जाती है और न ही समय पर काम उपलब्ध कराया जाता है।
डिमांड दर्ज कराने के लिए मांगे जा रहे पैसे
ग्रामीण लाभुकों का कहना है कि मनरेगा में काम पाने के लिए सबसे जरूरी प्रक्रिया डिमांड दर्ज कराना है। लेकिन आरोप है कि यही प्रक्रिया भ्रष्टाचार का केंद्र बन गई है। कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा खुलेआम या इशारों में रकम की मांग की जाती है।
एक ग्रामीण लाभुक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई बार कार्यालय का चक्कर लगाने के बावजूद उनका काम नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि जब तक पैसे नहीं दिए गए, तब तक डिमांड दर्ज नहीं की गई। इससे मजदूरी पर निर्भर परिवारों को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
गरीब परिवारों पर दोहरी मार
मनरेगा योजना ग्रामीण गरीबों के लिए जीवनरेखा मानी जाती है। ऐसे में इस योजना में भ्रष्टाचार का सीधा असर सबसे कमजोर वर्ग पर पड़ रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि मजदूरी न मिलने के कारण उन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है या पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
कई लाभुकों ने यह भी कहा कि कार्यालय में बार-बार जाने से उनका समय और पैसा दोनों बर्बाद हो रहा है। इससे मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही, तो मनरेगा जैसी योजना का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों में आक्रोश
इस कथित धांधली को लेकर ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी देखी जा रही है। लोगों का कहना है कि सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर गरीबों को रोजगार देने की योजना चला रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार इसकी सफलता में सबसे बड़ी बाधा बन गया है।
ग्रामीणों ने एक स्वर में मांग की है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी कर्मचारी इस तरह की हरकत करने की हिम्मत न कर सके।
जिला परिषद सदस्य ने उठाए सवाल
मामले को लेकर जिला परिषद सदस्य संतोषी शेखर ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि कंप्यूटर ऑपरेटर को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही हैं, जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
संतोषी शेखर ने कहा:
“मनरेगा गरीबों की योजना है। अगर इसमें भी वसूली होगी तो इसका सीधा नुकसान जरूरतमंदों को होगा। इस मामले को जल्द ही जिले के उपायुक्त के संज्ञान में लाया जाएगा और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की जाएगी।”
प्रशासनिक कार्रवाई पर टिकी निगाहें
फिलहाल यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है और अब सबकी निगाहें जिला प्रशासन की भूमिका पर टिकी हैं। ग्रामीणों को उम्मीद है कि प्रशासन इस शिकायत को गंभीरता से लेकर जांच कराएगा और दोषी पाए जाने पर सख्त कदम उठाएगा।
मनरेगा जैसी योजना की विश्वसनीयता तभी बनी रह सकती है, जब इसका क्रियान्वयन पारदर्शी और ईमानदार तरीके से हो। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो ग्रामीणों ने आंदोलन की चेतावनी भी दी है।
न्यूज़ देखो: जवाबदेही तय होना जरूरी
मनरेगा में कथित अवैध वसूली का मामला प्रशासनिक निगरानी की कमजोर कड़ी को उजागर करता है। यदि आरोप सही हैं, तो यह सीधे-सीधे गरीबों के अधिकारों का हनन है। अब यह देखना अहम होगा कि जांच कितनी निष्पक्ष होती है और दोषियों पर क्या कार्रवाई होती है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
पारदर्शिता से ही बचेगी योजना की साख
मनरेगा केवल रोजगार नहीं, बल्कि ग्रामीण आत्मसम्मान और अधिकार का प्रतीक है। ऐसे में हर नागरिक और जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाए।
अगर आप भी इस तरह की अनियमितता से प्रभावित हैं, तो अपनी राय साझा करें, खबर को आगे बढ़ाएं और प्रशासन तक सच पहुंचाने में भागीदार बनें।





