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सिमडेगा का श्रीरामरेखा धाम, जहां त्रेतायुग में पड़े प्रभु श्रीराम के चरण, अटूट है आस्था

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#सिमडेगा #आस्था_स्थल : झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित श्रीरामरेखा धाम में भगवान श्रीराम के चरणों की पवित्र छाप, सैकड़ों वर्षों से पूजित आस्था का प्रतीक
  • सिमडेगा जिले के पश्चिम में पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित है श्रीरामरेखा धाम
  • त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के चरण यहां पड़े थे।
  • भारत सरकार की 232 तीर्थस्थलों की सूची में शामिल है यह धाम।
  • 1916 से कार्तिक पूर्णिमा मेला परंपरा आज भी जारी है।
  • ओडिशा, बिहार, बंगाल और छत्तीसगढ़ से श्रद्धालु यहां दर्शन को पहुंचते हैं।

झारखंड के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के सिमडेगा जिले में अवस्थित श्रीरामरेखा धाम सदियों से आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है। मान्यता है कि त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण अपने वनवास के दौरान यहां ठहरे थे, और उनके पवित्र चरणों की रेखा इस स्थान को ‘श्रीरामरेखा धाम’ के रूप में अमर कर गई। यह स्थल सिमडेगा मुख्यालय से लगभग 28 किलोमीटर पश्चिम में, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है। प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा यह स्थान न केवल धार्मिक बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

चट्टान के बीच भगवान राम के चरणों की रेखा

श्रीरामरेखा धाम में एक विशाल प्राकृतिक गुफा है, जिसकी छत पर बनी लंबी रेखा को ही रामरेखा कहा जाता है। यही वह पवित्र निशान है जो भगवान श्रीराम की उपस्थिति का प्रतीक है। इस गुफा में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की प्रतिमाएं स्थापित हैं। परिसर में शिवलिंग, धनुष कुंड, सीता चौका, अग्निकुंड, गुप्त गंगा और रामरेखा बाबा की समाधि जैसे अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जो भक्तों को दिव्यता का अनुभव कराते हैं।

भारत सरकार की तीर्थ सूची में शामिल

सिमडेगा के लिए यह गर्व का विषय है कि भारत सरकार द्वारा जारी 232 प्रमुख तीर्थस्थलों की सूची में श्रीरामरेखा धाम भी शामिल है। 24 मार्च 2022 को श्रीलंका की अशोक वाटिका से अयोध्या की ओर निकली ‘श्रीराम वनगमन काव्य यात्रा रामरथ’ भी यहां पहुंची थी। यह वही यात्रा थी जो उन सभी स्थानों पर गई जहां वनवास काल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने चरण रखे थे।

एक सदी पुरानी मेले की परंपरा

श्रीरामरेखा धाम में 1916 से कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेला आयोजित होता आ रहा है। इसकी शुरुआत बीरूगढ़ के तत्कालीन राजा स्व. हुकूम सिंहदेव ने की थी। उन्होंने यहां राधा-कृष्ण की धातु की प्रतिमा स्थापित की और पहला रासमेला आयोजित कराया।
बाद में ब्रह्मलीन श्री श्री 1008 स्वामी जयराम प्रपन्नाचार्य जी (रामरेखा बाबा) ने मेले को धार्मिक स्वरूप प्रदान किया और अखंड हरिनाम यज्ञ व सत्संग प्रवचन की परंपरा शुरू की। आज भी यह परंपरा वैसी ही श्रद्धा और अनुशासन से निभाई जाती है।

अखंडदासजी महाराज ने कहा: “रामरेखा धाम में भगवान श्रीराम की उपस्थिति का एहसास होता है। यह स्थान साधु-संतों की तपोभूमि और आस्था का प्रतीक है।”

लाखों श्रद्धालुओं का तांता

हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा के अवसर पर यहां झारखंड के अलावा ओडिशा, बिहार, बंगाल और छत्तीसगढ़ से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मेला के दौरान अखंड कीर्तन, भजन, प्रवचन और धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन होता है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है

स्थानीय निवासियों जैसे जयप्रकाश गुप्ता, अनमोल मांझी, ओमप्रकाश अग्रवाल और जी.डी. पांडे ने बताया कि रामरेखा धाम की महिमा अलौकिक है और यहां की आस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती जा रही है।

पर्यटन और विकास की दिशा में पहल

राज्य सरकार अब श्रीरामरेखा धाम के विकास कार्यों को गति देने की तैयारी में है। यहां रोपवे लगाने का प्रस्ताव है, जिससे श्रद्धालुओं को पहाड़ी चढ़ाई में सुविधा होगी। इस पहल से न केवल पर्यटन को बल मिलेगा, बल्कि सिमडेगा जिले की पहचान भी धार्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में और मजबूत होगी।

न्यूज़ देखो: परंपरा और पर्यटन का संगम

श्रीरामरेखा धाम केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक है। यह वह स्थान है जहां आस्था, इतिहास और प्रकृति एक साथ मिलते हैं। राज्य सरकार और प्रशासन यदि इस पवित्र धाम के संरक्षण और प्रचार-प्रसार पर ध्यान दें, तो यह स्थल आने वाले वर्षों में झारखंड का प्रमुख धार्मिक-पर्यटन केंद्र बन सकता है।

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

आस्था से प्रेरित, विकास की ओर अग्रसर झारखंड

रामरेखा धाम हमें याद दिलाता है कि श्रद्धा जब परंपरा से जुड़ती है, तो वह समाज को जोड़ने की शक्ति बन जाती है। अब समय है कि हम सब इस धरोहर के संरक्षण में योगदान दें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी भगवान श्रीराम के चरणों की इस पवित्र भूमि को नमन कर सकें।

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Birendra Tiwari

कोलेबिरा, सिमडेगा

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