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जवाहर नवोदय विद्यालय कोलेबिरा के छात्र-छात्राएँ पालकोट के शैक्षणिक भ्रमण पर रवाना

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#कोलेबिरा #शैक्षणिक_भ्रमण : नवोदय विद्यालय के विद्यार्थियों ने पालकोट क्षेत्र के प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थलों का किया अध्ययन—ज्ञानवर्धक यात्रा ने बढ़ाई जिज्ञासा और वैज्ञानिक दृष्टि
  • जवाहर नवोदय विद्यालय कोलेबिरा के छात्र-छात्राएँ शैक्षणिक भ्रमण के तहत पालकोट के लिए रवाना हुए।
  • विद्यार्थियों ने पंपापुर गुफा, गोबर–सिल्ली पर्वत, और दतली डैम जैसे ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थलों का अवलोकन किया।
  • भ्रमण में प्राकृतिक संरचना, भू-वैज्ञानिक पहलू, तथा पर्यावरणीय अध्ययन पर विशेष चर्चा की गई।
  • पंपापुर गुफा में सालभर चलने वाली ठंडी हवा के वैज्ञानिक कारणों को समझने का अवसर मिला।
  • इस अध्ययन यात्रा में विद्यार्थीगण के साथ शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे उपस्थित रहे।
  • भ्रमण का उद्देश्य बच्चों को प्रत्यक्ष सीखने, अनुभव-आधारित शिक्षा, और स्थानीय भूगोल व इतिहास की गहराई से जानकारी देना था।

जवाहर नवोदय विद्यालय कोलेबिरा के छात्र-छात्राओं ने आज एक विशेष शैक्षणिक भ्रमण के तहत गुमला जिले के पालकोट क्षेत्र का दौरा किया। इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को वास्तविक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक स्थलों से जोड़ते हुए उनकी जिज्ञासा, अवलोकन कौशल और विश्लेषण क्षमता को विकसित करना था। विद्यालय से रवाना हुए छात्र-छात्राओं ने पंपापुर गुफा, गोबर–सिल्ली पर्वत और दतली डैम जैसे महत्त्वपूर्ण स्थलों का अध्ययन करते हुए वैज्ञानिक और भूगोलिक तथ्यों का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया। इस पूरे भ्रमण में उनकी देखरेख एवं मार्गदर्शन की जिम्मेदारी शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे ने संभाली।

शैक्षणिक भ्रमण का उद्देश्य: प्रत्यक्ष सीखने को प्रोत्साहन

विद्यालय द्वारा यह भ्रमण इस उद्देश्य से आयोजित किया गया कि विद्यार्थी केवल पुस्तकों तक सीमित न रहें, बल्कि वास्तविक जीवन में चीजों को देखकर, छूकर और समझकर सीखें। प्राकृतिक संरचनाओं, पर्वतीय भू-आकृतियों और पर्यावरणीय बदलावों को प्रत्यक्ष रूप से देखने से बच्चों की वैज्ञानिक सोच और विश्लेषण क्षमता बढ़ती है।
शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे के अनुसार:

“ऐसे भ्रमण बच्चों में समझ, जिज्ञासा और शोध की भावना को विकसित करते हैं। वास्तविक दुनिया को देखकर सीखना सबसे प्रभावी शिक्षा पद्धति है।”

पंपापुर गुफा: प्राकृतिक रहस्यों और वैज्ञानिक कारणों का अध्ययन

विद्यार्थियों ने अपने भ्रमण की शुरुआत पालकोट स्थित पंपापुर गुफा से की, जो अपनी अनोखी संरचना और सालभर चलने वाली ठंडी हवा के लिए प्रसिद्ध है।
यहां बच्चों और शिक्षकों के बीच यह चर्चा हुई कि गुफा में हवा ठंडी क्यों रहती है, इसके पीछे क्या भू-वैज्ञानिक कारण हैं, और हवा के प्रवाह का प्राकृतिक विज्ञान से क्या संबंध है।
गुफा की बनावट, भीतर का तापमान और संरचनागत विशेषताओं ने बच्चों में कई वैज्ञानिक प्रश्न उत्पन्न किए, जिनका समाधान现场 अध्ययन के माध्यम से किया गया।

गोबर–सिल्ली पर्वत: ऊँचाइयों से प्रकृति का अद्भुत दृश्य

दूसरा पड़ाव गोबर–सिल्ली पर्वत रहा, जिसकी ऊँचाइयों से दिखने वाले प्राकृतिक विहंगम दृश्य ने बच्चों को उत्साहित कर दिया।
यहां विद्यार्थियों ने पर्वतीय भू-आकृति, पर्यावरण संरक्षण, मिट्टी के प्रकार, जल प्रवाह और जैव विविधता जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा की।
पर्वत की ऊंचाई से मिलने वाले दृश्य और प्राकृतिक शांति ने बच्चों को प्रकृति से गहरा जुड़ाव महसूस कराया।

दतली डैम: जल प्रबंधन और पर्यावरण की बारीकियों का प्रत्यक्ष ज्ञान

भ्रमण का तीसरा और अंतिम पड़ाव था दतली डैम, जिसे विद्यार्थी देखकर अत्यंत उत्साहित हुए।
यहां उन्होंने जल प्रबंधन, बांध की संरचना, सिंचाई प्रणाली और जल संरक्षण जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को प्रत्यक्ष रूप से समझा।
बच्चों ने यह भी जाना कि डैम कैसे आसपास के ग्रामीण इलाकों को खेती और पेयजल के माध्यम से सहारा देता है और इसका पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है।

शिक्षक की भूमिका और विद्यार्थियों की सीख

पूरी यात्रा के दौरान शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे ने छात्रों को हर स्थल के वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और भूगोलिक पहलुओं से अवगत कराया।
उन्होंने विद्यार्थियों को सवाल पूछने, नोट्स बनाने और तुलना करने के लिए प्रोत्साहित किया।
यह भ्रमण उनके लिए सिर्फ एक टूर नहीं बल्कि ज्ञान और अनुभव से भरी एक शिक्षण प्रक्रिया साबित हुई।

विद्यार्थियों में दिखा उत्साह और सीखने की ललक

भ्रमण में शामिल सभी छात्र-छात्राएँ नई जानकारी से समृद्ध होकर लौटे।
उन्होंने प्रकृति के करीब रहकर कई विषयों को गहराई से समझा और वास्तविक उदाहरणों के माध्यम से अपनी जिज्ञासा का समाधान किया।
बहुत से विद्यार्थियों ने कहा कि यह यात्रा उनके लिए यादगार रही और उन्हें आगे भी ऐसे अवसर मिलने चाहिए, जिससे वे पुस्तक से परे व्यापक दृष्टिकोण विकसित कर सकें।

न्यूज़ देखो: शिक्षा में अनुभवात्मक सीख जरूरी

यह पूरी घटना दर्शाती है कि विद्यालयों में केवल कक्षा-कक्ष आधारित शिक्षा पर्याप्त नहीं है। अनुभवात्मक शिक्षा से बच्चों की सोच, समझ और सीखने की क्षमता में कई गुना वृद्धि होती है। विद्यालय प्रशासन द्वारा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना सराहनीय है, क्योंकि यह विद्यार्थियों को वास्तविक दुनिया से जोड़ता है और उनकी जिज्ञासा को पंख देता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

सीखने की नई उड़ान: प्रकृति से मिले ज्ञान को आगे बढ़ाएं

जब बच्चे किताबों से बाहर निकलकर प्रकृति, इतिहास और विज्ञान को प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं, तब शिक्षा का वास्तविक रूप सामने आता है।
यह भ्रमण इस बात का प्रमाण है कि सीखने की प्रक्रिया केवल दीवारों के भीतर नहीं, बल्कि खुले आसमान, पहाड़ों, जलस्रोतों और धरती की संरचना में भी छिपी है।
आइए हम सब मिलकर ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करें, ताकि अगली पीढ़ी अधिक जागरूक, संवेदनशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली बन सके।

अब आप बताएं —
क्या इस तरह के शैक्षणिक भ्रमण बच्चों के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
अपनी राय कमेंट में साझा करें, खबर को दोस्तों और शिक्षकों तक पहुंचाएं, और शिक्षा के इस सकारात्मक प्रयास को आगे बढ़ाएं।

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Birendra Tiwari

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  • जवाहर नवोदय विद्यालय कोलेबिरा के छात्र-छात्राएँ शैक्षणिक भ्रमण के तहत पालकोट के लिए रवाना हुए।
  • विद्यार्थियों ने पंपापुर गुफा, गोबर–सिल्ली पर्वत, और दतली डैम जैसे ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थलों का अवलोकन किया।
  • भ्रमण में प्राकृतिक संरचना, भू-वैज्ञानिक पहलू, तथा पर्यावरणीय अध्ययन पर विशेष चर्चा की गई।
  • पंपापुर गुफा में सालभर चलने वाली ठंडी हवा के वैज्ञानिक कारणों को समझने का अवसर मिला।
  • इस अध्ययन यात्रा में विद्यार्थीगण के साथ शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे उपस्थित रहे।
  • भ्रमण का उद्देश्य बच्चों को प्रत्यक्ष सीखने, अनुभव-आधारित शिक्षा, और स्थानीय भूगोल व इतिहास की गहराई से जानकारी देना था।

जवाहर नवोदय विद्यालय कोलेबिरा के छात्र-छात्राओं ने आज एक विशेष शैक्षणिक भ्रमण के तहत गुमला जिले के पालकोट क्षेत्र का दौरा किया। इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को वास्तविक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक स्थलों से जोड़ते हुए उनकी जिज्ञासा, अवलोकन कौशल और विश्लेषण क्षमता को विकसित करना था। विद्यालय से रवाना हुए छात्र-छात्राओं ने पंपापुर गुफा, गोबर–सिल्ली पर्वत और दतली डैम जैसे महत्त्वपूर्ण स्थलों का अध्ययन करते हुए वैज्ञानिक और भूगोलिक तथ्यों का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया। इस पूरे भ्रमण में उनकी देखरेख एवं मार्गदर्शन की जिम्मेदारी शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे ने संभाली।

शैक्षणिक भ्रमण का उद्देश्य: प्रत्यक्ष सीखने को प्रोत्साहन

विद्यालय द्वारा यह भ्रमण इस उद्देश्य से आयोजित किया गया कि विद्यार्थी केवल पुस्तकों तक सीमित न रहें, बल्कि वास्तविक जीवन में चीजों को देखकर, छूकर और समझकर सीखें। प्राकृतिक संरचनाओं, पर्वतीय भू-आकृतियों और पर्यावरणीय बदलावों को प्रत्यक्ष रूप से देखने से बच्चों की वैज्ञानिक सोच और विश्लेषण क्षमता बढ़ती है।
शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे के अनुसार:

“ऐसे भ्रमण बच्चों में समझ, जिज्ञासा और शोध की भावना को विकसित करते हैं। वास्तविक दुनिया को देखकर सीखना सबसे प्रभावी शिक्षा पद्धति है।”

पंपापुर गुफा: प्राकृतिक रहस्यों और वैज्ञानिक कारणों का अध्ययन

विद्यार्थियों ने अपने भ्रमण की शुरुआत पालकोट स्थित पंपापुर गुफा से की, जो अपनी अनोखी संरचना और सालभर चलने वाली ठंडी हवा के लिए प्रसिद्ध है।
यहां बच्चों और शिक्षकों के बीच यह चर्चा हुई कि गुफा में हवा ठंडी क्यों रहती है, इसके पीछे क्या भू-वैज्ञानिक कारण हैं, और हवा के प्रवाह का प्राकृतिक विज्ञान से क्या संबंध है।
गुफा की बनावट, भीतर का तापमान और संरचनागत विशेषताओं ने बच्चों में कई वैज्ञानिक प्रश्न उत्पन्न किए, जिनका समाधान अध्ययन के माध्यम से किया गया।

गोबर–सिल्ली पर्वत: ऊँचाइयों से प्रकृति का अद्भुत दृश्य

दूसरा पड़ाव गोबर–सिल्ली पर्वत रहा, जिसकी ऊँचाइयों से दिखने वाले प्राकृतिक विहंगम दृश्य ने बच्चों को उत्साहित कर दिया।
यहां विद्यार्थियों ने पर्वतीय भू-आकृति, पर्यावरण संरक्षण, मिट्टी के प्रकार, जल प्रवाह और जैव विविधता जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा की।
पर्वत की ऊंचाई से मिलने वाले दृश्य और प्राकृतिक शांति ने बच्चों को प्रकृति से गहरा जुड़ाव महसूस कराया।

दतली डैम: जल प्रबंधन और पर्यावरण की बारीकियों का प्रत्यक्ष ज्ञान

भ्रमण का तीसरा और अंतिम पड़ाव था दतली डैम, जिसे विद्यार्थी देखकर अत्यंत उत्साहित हुए।
यहां उन्होंने जल प्रबंधन, बांध की संरचना, सिंचाई प्रणाली और जल संरक्षण जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को प्रत्यक्ष रूप से समझा।
बच्चों ने यह भी जाना कि डैम कैसे आसपास के ग्रामीण इलाकों को खेती और पेयजल के माध्यम से सहारा देता है और इसका पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है।

शिक्षक की भूमिका और विद्यार्थियों की सीख

पूरी यात्रा के दौरान शिक्षक आशुतोष कुमार पांडे ने छात्रों को हर स्थल के वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और भूगोलिक पहलुओं से अवगत कराया।
उन्होंने विद्यार्थियों को सवाल पूछने, नोट्स बनाने और तुलना करने के लिए प्रोत्साहित किया।
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विद्यार्थियों में दिखा उत्साह और सीखने की ललक

भ्रमण में शामिल सभी छात्र-छात्राएँ नई जानकारी से समृद्ध होकर लौटे।
उन्होंने प्रकृति के करीब रहकर कई विषयों को गहराई से समझा और वास्तविक उदाहरणों के माध्यम से अपनी जिज्ञासा का समाधान किया।
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यह पूरी घटना दर्शाती है कि विद्यालयों में केवल कक्षा-कक्ष आधारित शिक्षा पर्याप्त नहीं है। अनुभवात्मक शिक्षा से बच्चों की सोच, समझ और सीखने की क्षमता में कई गुना वृद्धि होती है। विद्यालय प्रशासन द्वारा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना सराहनीय है, क्योंकि यह विद्यार्थियों को वास्तविक दुनिया से जोड़ता है और उनकी जिज्ञासा को पंख देता है।
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सीखने की नई उड़ान: प्रकृति से मिले ज्ञान को आगे बढ़ाएं

जब बच्चे किताबों से बाहर निकलकर प्रकृति, इतिहास और विज्ञान को प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं, तब शिक्षा का वास्तविक रूप सामने आता है।
यह भ्रमण इस बात का प्रमाण है कि सीखने की प्रक्रिया केवल दीवारों के भीतर नहीं, बल्कि खुले आसमान, पहाड़ों, जलस्रोतों और धरती की संरचना में भी छिपी है।
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