
#पलामू #मनरेगा_विवाद : महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष रेखा सिंह ने योजना के नाम और स्वरूप बदलने को बताया सोची-समझी साजिश
- पलामू महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष रेखा सिंह ने केंद्र सरकार पर मनरेगा से गांधी जी का नाम हटाने की साजिश का आरोप लगाया।
- 2005 में नरेगा और 2009 में मनरेगा नामकरण का ऐतिहासिक संदर्भ रखा।
- ग्रामीण रोजगार और अर्थव्यवस्था में मनरेगा की निर्णायक भूमिका रेखांकित की।
- कोरोना काल में योजना को ग्रामीण भारत के लिए वरदान बताया।
- प्रस्तावित VB-RAM-G के तहत नाम और स्वरूप बदलने पर केंद्रित निर्णय प्रक्रिया की आशंका जताई।
- कहा—गांधी जी का नाम और विचार मिटाना असंभव।
पलामू जिले में महिला कांग्रेस कमिटी की जिलाध्यक्ष श्रीमती रेखा सिंह ने केंद्र की मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि मनरेगा योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाने की कवायद एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश है। उन्होंने कहा कि सरकार न केवल योजना का नाम बदलना चाहती है, बल्कि उसके मूल स्वरूप को भी कमजोर करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है, जिससे ग्रामीण मजदूरों और पंचायत व्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा।
रेखा सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मनरेगा केवल एक योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत के लिए सामाजिक सुरक्षा की गारंटी रही है। इसे कमजोर करना सीधे तौर पर गरीब, मजदूर और किसान विरोधी कदम है।
नरेगा से मनरेगा तक का सफर
रेखा सिंह ने योजना के इतिहास का उल्लेख करते हुए बताया कि वर्ष 2005 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) की शुरुआत हुई थी। बाद में 2009 में इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) किया गया।
उन्होंने कहा कि यह नामकरण केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि गांधी जी के सत्य, अहिंसा और श्रम की गरिमा के विचारों से योजना को जोड़ने का प्रयास था। इस योजना ने चरणबद्ध तरीके से पहले कुछ जिलों में और फिर पूरे देश में लागू होकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिली मजबूती
महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने कहा कि मनरेगा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। पहली बार मजदूरों का भुगतान सीधे बैंक खाते में किया गया, जिससे पारदर्शिता बढ़ी और बिचौलियों की भूमिका कम हुई।
उन्होंने कहा कि कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो यह योजना कांग्रेस सरकार की सबसे प्रभावी और जनहितकारी योजनाओं में से एक रही है।
2014 के बाद बदला नजरिया
रेखा सिंह ने आरोप लगाया कि 2014 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही मनरेगा को लेकर नकारात्मक रवैया अपनाया गया। उन्होंने कहा कि चूंकि यह योजना 2009 में कांग्रेस की वापसी में सहायक साबित हुई थी, इसलिए भाजपा नेतृत्व इसे शुरू से ही असहजता के साथ देखता रहा।
उन्होंने कहा कि पहले चरण में सीधे छेड़छाड़ से परहेज किया गया, लेकिन धीरे-धीरे नए नियम-कानून, भुगतान में देरी और फंड आवंटन की अनिश्चितता के जरिए मजदूरों का मनोबल तोड़ा गया।
कोरोना काल में साबित हुई संजीवनी
रेखा सिंह ने कहा कि कोरोना संकट के दौरान जब शहरों से प्रवासी मजदूर गांव लौटे, तब मनरेगा ग्रामीण भारत के लिए संजीवनी साबित हुई। लाखों परिवारों को न्यूनतम आय और सम्मानजनक रोजगार मिला।
उनका कहना था कि यदि मनरेगा न होती, तो ग्रामीण क्षेत्रों में हालात और भी भयावह हो सकते थे।
VB-RAM-G को लेकर आशंका
महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने कहा कि अब अपने तीसरे कार्यकाल में केंद्र सरकार मनरेगा का नाम बदलकर “विकसित भारत गारंटी एंड रोजगार फॉर आजीविका मिशन ग्रामीण (VB-RAM-G)” करने जा रही है।
उन्होंने आशंका जताई कि नए ढांचे में नाम और स्वरूप दोनों बदल जाएंगे। पहले जहां काम की स्वीकृति ग्राम सभा और पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा होती थी, वहीं अब निर्णय केंद्र सरकार के हाथ में होगा।
रेखा सिंह ने कहा:
रेखा सिंह ने कहा: “न मजदूरों की मांग के अनुसार काम मिलेगा, न जरूरत के अनुसार फंड। बजट फिक्स रहेगा और स्वीकृति में महीने-साल गुजर जाएंगे। यह मनरेगा का जय राम जी अर्थात सत्यानाश करने की तैयारी है।”
गांधी जी का नाम मिटाना असंभव
रेखा सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि महात्मा गांधी का नाम किसी योजना से हटाया जा सकता है, लेकिन गांधीवाद को मिटाना नामुमकिन है।
उन्होंने कहा:
रेखा सिंह ने कहा: “जब तक धरती, आकाश और पाताल रहेगा, तब तक भारत ही नहीं पूरी दुनिया में गांधी जी का नाम रहेगा। उन्होंने सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और सभी धर्मों व जीवों से प्रेम का संदेश दिया।”
उनका कहना था कि ऐसे महान व्यक्ति के विचारों को सरकारी आदेश से समाप्त नहीं किया जा सकता।
कांग्रेस का संघर्ष जारी रहेगा
महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने कहा कि पार्टी मनरेगा और ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए सड़क से संसद तक संघर्ष करेगी। उन्होंने ग्रामीण जनता से आह्वान किया कि वे इस बदलाव के प्रभाव को समझें और अपने अधिकारों के लिए संगठित हों।
न्यूज़ देखो: मनरेगा बनाम नई योजना की बहस
मनरेगा को लेकर उठी यह बहस केवल नाम परिवर्तन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण शासन, रोजगार की गारंटी और विकेंद्रीकरण जैसे मूल सवालों से जुड़ी है। यदि निर्णय प्रक्रिया केंद्रित होती है, तो पंचायतों की भूमिका कमजोर पड़ सकती है। आने वाले समय में इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक विमर्श और तेज होगा। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
ग्रामीण अधिकारों की रक्षा का सवाल
रोजगार, सम्मान और अधिकार—ग्रामीण भारत की यह बुनियादी मांग है।
योजनाओं में बदलाव का असर सबसे पहले मजदूरों पर पड़ता है, इसलिए जागरूक रहना जरूरी है।
इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है? कमेंट कर अपनी बात रखें, खबर को साझा करें और ग्रामीण हितों से जुड़े इस सवाल पर चर्चा को आगे बढ़ाएं।





