
#गुमला #राष्ट्रीय_वीरता : परमवीर चक्र विजेता अल्बर्ट एक्का की अदम्य शौर्यगाथा आज भी देश को प्रेरित करती है।
- अल्बर्ट एक्का, गुमला जिले के जारी गांव के वीर सपूत, 1971 युद्ध के नायक।
- 3 दिसंबर 1971 को शकरगढ़ सेक्टर के गंगासागर पोस्ट पर कब्ज़े का जिम्मा।
- दुश्मनों की भारी मशीनगनों को ध्वस्त कर युद्ध का रुख भारत की ओर मोड़ा।
- भीषण चोटों के बावजूद अंतिम सांस तक लड़ते रहे, फिर भी बंकर नष्ट किए।
- राष्ट्र ने उनके बलिदान को परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत की निर्णायक जीत के पीछे कई अदम्य वीरों का योगदान रहा, जिनमें सबसे अग्रणी नाम है परमवीर चक्र विजेता लांस नायक अल्बर्ट एक्का। झारखंड के गुमला जिला अंतर्गत जारी गांव के इस वीर सैनिक ने मोर्चे पर जिस साहस का परिचय दिया, वह भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। गंगासागर पोस्ट पर कब्ज़ा करने की चुनौती भरी कार्रवाई के दौरान उन्होंने अपने प्राणों की परवाह किए बिना दुश्मन पर धावा बोला और देश के लिए विजय मार्ग प्रशस्त किया।
जारी का वीर सपूत: बचपन से ही साहस और अनुशासन का परिचय
27 दिसंबर 1942 को जन्मे अल्बर्ट एक्का एक साधारण परिवार से आते थे, लेकिन बचपन से ही उनमें अनुशासन, ईमानदारी और साहस कूट-कूटकर भरा था। खेल-कूद, शारीरिक क्षमता और समर्पण ने उन्हें सेना की ओर आकर्षित किया। भारतीय सेना में भर्ती होने के बाद उन्होंने स्वयं को एक जांबाज़ और भरोसेमंद सैनिक के रूप में सिद्ध किया।
14 गार्ड्स रेजिमेंट में तैनाती के साथ उनकी ज़िम्मेदारियाँ और भी बढ़ गईं, लेकिन एक्का ने हर चुनौती को अवसर में बदला।
1971 युद्ध: गंगासागर पोस्ट की निर्णायक लड़ाई
3 दिसंबर 1971 को युद्ध आरंभ होते ही उनकी यूनिट को शकरगढ़ सेक्टर की रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण गंगासागर पोस्ट पर कब्ज़ा करने का आदेश मिला। यह पोस्ट दुश्मन की भारी मशीनगनों, मजबूत बंकरों और ऊँची पोज़िशन से घिरा हुआ था। हमला जोखिम भरा था, लेकिन पीछे हटना एक्का के स्वभाव में नहीं था।
भीषण हमले के बीच अतुलनीय पराक्रम
हमले के दौरान अल्बर्ट एक्का गंभीर रूप से घायल हुए, फिर भी उन्होंने पीड़ा को नजरअंदाज़ कर दुश्मन की मशीन गन पोस्ट की ओर बढ़त जारी रखी।
उन्होंने:
- दुश्मन की हैवी मशीनगन पोस्ट को नष्ट किया,
- फिर ऊँचे बंकर पर चढ़कर उसके भीतर फायरिंग कर उसे भी ध्वस्त कर दिया,
- इस कार्रवाई से पाकिस्तानी सेना का पूरा संतुलन बिगड़ गया और उनके सैनिकों में भारी अफरा-तफरी मच गई।
उनकी अद्भुत बहादुरी के कारण भारतीय सेना ने निर्णायक बढ़त हासिल की और गंगासागर पोस्ट पर कब्ज़ा संभव हो सका, जो पूर्वी मोर्चे पर भारत की जीत का अहम मोड़ साबित हुआ।
अंतिम सांस तक लड़ते रहे अल्बर्ट एक्का
अपनी चोटों के बावजूद अल्बर्ट एक्का ने अंतिम गोली तक दुश्मन का सामना किया। युद्ध के दौरान वे वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन उनका बलिदान भारत की जीत की नींव बन गया। राष्ट्र ने उनके सर्वोच्च साहस के सम्मान में उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया—जो भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है।
जारी और गुमला की धरती आज भी गर्वित
आज जारी, गुमला और पूरा झारखंड अल्बर्ट एक्का को गर्व से याद करता है। उनकी स्मृतियाँ न केवल सैन्य इतिहास में दर्ज हैं, बल्कि राष्ट्र के हृदय में भी बसती हैं। हर वर्ष हजारों लोग उनकी वीरगाथा सुनकर प्रेरित होते हैं और देशसेवा का संकल्प लेते हैं।
उनकी जीवनगाथा हमें सिखाती है कि कर्तव्य, त्याग और निष्ठा से बढ़कर कोई धर्म नहीं।



न्यूज़ देखो: परमवीर एक्का की शौर्यगाथा से सीख
अल्बर्ट एक्का का साहस केवल एक सैनिक की वीरता नहीं, बल्कि यह संदेश है कि कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ संकल्प से असंभव को संभव किया जा सकता है। झारखंड की धरती ने ऐसे अमर वीर को जन्म देकर पूरे देश को गौरवान्वित किया है। उनकी शौर्यगाथा नई पीढ़ी को राष्ट्रहित सर्वोपरि रखने की प्रेरणा देती है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
देशभक्ति का संकल्प
अल्बर्ट एक्का की कहानी हमें याद दिलाती है कि राष्ट्र की सुरक्षा में लगे वीरों का सम्मान हमारा कर्तव्य है।
उनके त्याग को स्मरण करते हुए हमें समाज और देश के प्रति अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
आप भी इस अदम्य वीर की गाथा को अधिकतम लोगों तक पहुँचाएँ।
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