
#बरवाडीह #किसान_संघर्ष : जंगली हाथियों के लगातार हमलों से बेतला रेंज के कई गांवों की फसलें नष्ट, किसानों को मुआवजा न मिल पाने से गहरा आक्रोश
- बरवाडीह प्रखंड के बेतला रेंज में जंगली हाथियों का उत्पात लगातार बढ़ता जा रहा है।
- बेतला, पोखरिकला, अखरा, कोलपुरवा, डोरामी, कुटमु, मुरु सहित दर्जनों गांवों में फसलों को भारी नुकसान।
- वन विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए पटाखे, बैटरी, तेल जैसे संसाधन प्रभावी नहीं।
- 20 सूत्री अध्यक्ष मो. नसीम अंसारी ने बताया—15 वर्षों से वन विभाग रात्री सुरक्षा शिविर लगाना बंद कर चुका है।
- किसानों का आरोप—फसलें नष्ट होने के बाद भी मुआवजे की प्रक्रिया वर्षों से लंबित, राहत नहीं मिलती।
बेतला रेंज के गांवों में जंगली हाथियों का खतरा लगातार बढ़ रहा है और रात-दिन फसलों को नुकसान पहुंच रहा है। किसान बताते हैं कि संकट नया नहीं है, लेकिन अब यह समस्या असहनीय स्तर पर पहुंच चुकी है। फसलों के लगातार नष्ट होने से ग्रामीणों की जीवनयापन पर सीधी मार पड़ी है। वन विभाग द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले साधन अक्सर नाकाफी साबित हो रहे हैं। इससे किसानों में आक्रोश है और वे त्वरित तथा प्रभावी समाधान की मांग कर रहे हैं।
बेतला रेंज में जंगली हाथियों का लगातार बढ़ता दबाव
बेतला रेंज के आसपास के गांवों में जंगली हाथी लगभग रोजाना दिखाई देते हैं। किसानों के अनुसार हाथियों के झुंड रात के समय खेतों में धान, मक्का और अन्य फसलों को रौंद देते हैं। विशेष रूप से बेतला, पोखरिकला, पोखरीखुर्द, अखरा, कोलपुरवा, डोरामी, कुटमु और मुरु गांव सबसे अधिक प्रभावित हैं। ग्रामीणों के पास न तो पर्याप्त सुरक्षा साधन हैं और न ही कोई स्थायी समाधान।
हाथियों का झुंड अक्सर जंगल से निकलकर सीधे खेती वाले क्षेत्रों में प्रवेश कर जाता है, जिसके कारण किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। कई बार ग्रामीण समूह बनाकर हाथियों को भगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन असफलता ही हाथ लगती है।
वन विभाग की उपाय योजना क्यों साबित हो रही है नाकाफी?
वन विभाग द्वारा फसल सुरक्षा हेतु पटाखे, टॉर्च, बैटरी, तेल आदि सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन ग्रामीण बताते हैं कि यह सामग्री हाथियों को कुछ ही मिनट रोक पाती है। इसके बाद हाथी फिर से खेतों में आ जाते हैं।
पहले वन विभाग गांवों में रात्री शिविर चलाता था, जिसमें किसानों को रुकने पर मजदूरी भी दी जाती थी। इससे फसलें सुरक्षित रहती थीं। लेकिन पिछले लगभग 15 वर्षों से यह शिविर व्यवस्था बंद कर दी गई है, जिसके बाद फसल सुरक्षा लगभग असंभव हो चुकी है।
मो. नसीम अंसारी ने उठाया बड़ा सवाल
मो. नसीम अंसारी ने कहा: “पहले वन विभाग शिविर चालू रखता था, जिससे फसलों की रक्षा होती थी। अब व्यवस्था बंद है और किसान अपनी फसलें भगवान भरोसे छोड़ने को मजबूर हैं।”
उनके अनुसार शिविर प्रणाली बंद होने से दोनों पक्ष—किसान और वन विभाग—पर दबाव बढ़ा है। किसान रातभर खेतों में जागकर भी फसलों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।
सबसे बड़ी समस्या: मुआवजा नहीं मिलना
हजारों-लाखों की फसल नष्ट होने के बाद भी किसानों को अक्सर मुआवजा नहीं मिलता।
ग्रामीण बताते हैं कि आवेदन की प्रक्रिया लंबी है, जांच वर्षों तक चलती रहती है और अंत में राहत के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता।
फसल नुकसान की भरपाई न होने से किसान कर्ज़ के बोझ तले दबते जा रहे हैं और हर सीजन में नुकसान का जोखिम बढ़ता जा रहा है।
जंगली हाथियों का फसल चक्र पर गंभीर प्रभाव
लगातार फसल बर्बाद होने से किसानों की मेहनत, समय और निवेश सब पर संकट है। कई कृषि परिवार जो धान पर निर्भर हैं, अब पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जाए, नहीं तो आने वाले समय में खेती करना मुश्किल होता जाएगा।
न्यूज़ देखो: मुआवजा और सुरक्षा दोनों पर कार्रवाई जरूरी
जंगली हाथियों का यह बढ़ता खतरा केवल किसानों का व्यक्तिगत नुकसान नहीं बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती भी है। वन विभाग को न केवल सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत है, बल्कि मुआवजे की प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध बनाना भी आवश्यक है। यह मामला ग्रामीणों की जीविका से जुड़ा है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
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किसानों की सुरक्षा और सम्मान हमारी जिम्मेदारी
जंगल के किनारे बसे गांव वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अब समय है कि उनकी आवाज़ को गंभीरता से सुना जाए। जंगली हाथियों से फसलों की सुरक्षा के लिए स्थायी और वैज्ञानिक उपाय तैयार करना प्रशासन और समाज दोनों की जिम्मेदारी है। खेती हमारा आधार है और किसानों की रक्षा करना हम सबका कर्तव्य।
अब आपकी राय बेहद महत्वपूर्ण है—क्या वन विभाग को फिर से रात्री शिविर व्यवस्था शुरू करनी चाहिए? क्या मुआवजे की प्रक्रिया को सरल बनाना चाहिए?
अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें और जागरूकता फैलाएं ताकि किसानों की समस्या तक जिम्मेदार लोग पहुंच सकें।





