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घाघरा की कड़ाके की ठंड में निजी स्कूलों की जिद बढ़ी, कोहरे में ठिठुरते नन्हे बच्चों की परेशानी चरम पर

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#घाघरा #स्कूलसमयविवाद : घने कोहरे और शीतलहर के बीच निजी स्कूलों द्वारा समय परिवर्तन से इंकार करने पर अभिभावकों का रोष बढ़ा—बच्चों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग तेज।
  • घाघरा, गुमला में कड़ाके की ठंड और घना कोहरा जारी।
  • निजी स्कूलों ने समय बदलाव से साफ इंकार किया।
  • अभिभावकों की शिकायत—बच्चों की तबीयत बिगड़ने की खबरें।
  • सरकारी स्कूलों ने समय बदलकर राहत दी, निजी स्कूल अब भी अड़ियल रुख पर।
  • बच्चों पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव, बचपन किताबों में कैद होने की चिंता।
  • जिला प्रशासन, बीईओ और शिक्षा विभाग से तत्काल कार्रवाई की मांग।

घाघरा और आसपास के क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड ने जनजीवन बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। सुबह के समय घने कोहरे और तेज ठंड की वजह से सड़क पर निकलना मुश्किल हो गया है, लेकिन इसी मुश्किल हालात में नन्हे बच्चे निजी स्कूलों द्वारा तय समय पर ही स्कूल जाने के लिए मजबूर हैं। सरकारी स्कूलों ने मौसम की गंभीरता को देखते हुए समय परिवर्तन कर छात्रों को राहत दी है, जबकि निजी स्कूल किसी बदलाव को तैयार नहीं दिख रहे। इस रवैये के कारण बच्चों की सेहत और सुरक्षा को लेकर अभिभावकों में गहरी चिंता है और कई परिवारों ने प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की है।

घाघरा में शीतलहर का कहर, बच्चों के लिए बढ़ी कठिनाई

घाघरा में पिछले कई दिनों से तापमान में तेज गिरावट दर्ज की जा रही है। शीतलहर की वजह से सुबह का समय इतना ठंडा हो गया है कि बच्चे घर से निकलते ही कंपकंपी महसूस करने लगते हैं। ऊपर से घना कोहरा दृश्यता को बेहद कम कर रहा है, जिससे छोटे बच्चों का बस स्टॉप या स्कूल तक पहुँचना जोखिमभरा बन चुका है। स्कूल जाने के दौरान कई बच्चे ठंड से कांपते हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसके कारण अभिभावकों की चिंता स्वाभाविक रूप से बढ़ गई है।

सरकारी स्कूलों ने समय बदला, निजी स्कूल पुराने समय पर अड़े

सरकारी स्कूलों ने मौसम की स्थिति को देखते हुए बच्चों को राहत देने के लिए समय परिवर्तन कर दिया है। इससे बच्चों को सुबह की कड़ाके की ठंड से काफी हद तक बचाव मिला है। इसके विपरीत, निजी स्कूलों का रुख पूरी तरह से उदासीन दिखाई दे रहा है। अभिभावकों के अनुसार निजी स्कूलों की यह जिद बच्चों की सेहत से खिलवाड़ करने जैसा है।
अभिभावकों का कहना है कि जब सरकारी स्कूल बच्चों के हित में समय बदल सकते हैं, तो निजी स्कूल ऐसा क्यों नहीं कर रहे? क्या उनके लिए बच्चों की सुरक्षा से अधिक फीस और कड़ाई से लागू अनुशासन जरूरी हो गया है?

ठिठुरन के बीच बच्चे बन रहे मजबूर, स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर

मौसम के इस भीषण दौर में छोटे बच्चों की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय है। कई बच्चों के बीमार पड़ने की खबरों ने अभिभावकों की चिंता बढ़ा दी है। ठंड इतनी तीखी है कि सुबह-सुबह बस का इंतजार करने या स्कूल परिसर में समय बिताने के दौरान बच्चे लगातार ठिठुर रहे हैं।
कई अभिभावकों ने बताया कि बच्चों की तबीयत बिगड़ने की वजह से उन्हें डॉक्टर के पास भी ले जाना पड़ा है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि शिक्षा व्यवस्था का उद्देश्य बच्चों पर दबाव बढ़ाना है या उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना।

पढ़ाई का भारी दबाव, बचपन कैद होने की चिंता

अभिभावकों ने यह भी कहा कि निजी स्कूलों में पढ़ाई और अनुशासन का दबाव इतना अधिक है कि बच्चों के पास खेलने-कूदने या सहज बचपन जीने का समय ही नहीं बच रहा। ठंड में सुबह-सुबह स्कूल जाने की मजबूरी ने इस दबाव को और बढ़ा दिया है।
एक अभिभावक ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा:

अभिभावक ने कहा: “बच्चे इंसान हैं, मशीन नहीं कि बटन दबाया और उन्हें ठंड महसूस ही नहीं होगी।”

प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग तेज, जल्द निर्णय की उम्मीद

आज परिस्थितियां इस हद तक बिगड़ गई हैं कि अभिभावकों ने अब जिला प्रशासन, बीईओ (प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी) और शिक्षा विभाग से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:

  • घाघरा और आसपास के सभी निजी स्कूलों पर सख्ती की जाए।
  • मौसम की स्थिति को देखते हुए स्कूल समय में तत्काल बदलाव का आदेश जारी किया जाए।
  • आदेश का पालन न करने वाले स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

अभिभावकों का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा से किसी भी तरह का समझौता बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और प्रशासन को जल्द कार्रवाई करनी चाहिए ताकि निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाई जा सके।

बच्चों की सुरक्षा बनाम निजी स्कूलों की जिद: कौन जीतेगा?

निजी स्कूलों द्वारा समय में किसी भी तरह का बदलाव न करने के पीछे की वजह चाहे जो भी हो, लेकिन परिस्थितियां स्पष्ट रूप से बच्चों के पक्ष में नहीं जा रहीं। एक तरफ मौसम का कहर है और दूसरी तरफ निजी संस्थानों की कठोर नीतियाँ। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन किस तरह इस संकट का समाधान निकालता है।

अभिभावकों की भावनाएँ: उम्मीद और रोष दोनों

मौजूदा हालात ने अभिभावकों को बेहद तनावग्रस्त कर दिया है। उन्हें लगता है कि बच्चों का बचपन ठंड के कोहरे में खोता जा रहा है और निजी स्कूल इसे समझने को तैयार नहीं। कई परिजन उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासनिक स्तर पर जल्द कोई प्रभावी निर्णय लेकर बच्चों की परेशानी कम की जाएगी।

न्यूज़ देखो: बच्चों की सुरक्षा पर समझौता अस्वीकार्य

इस खबर के जरिए यह साफ होता है कि कठोर ठंड के मौसम में भी कई निजी स्कूल केवल समय-सारणी की जिद पर अड़े हुए हैं, जिससे नन्हे बच्चों की जान जोखिम में पड़ रही है। जिम्मेदारी सिर्फ अभिभावकों की नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की भी है कि वह मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार संवेदनशील निर्णय ले। प्रशासन को तत्काल हस्तक्षेप कर स्थिति को संतुलित करना चाहिए और बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब समय बच्चों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने का

इस ठिठुरती सर्दी में बच्चों के हित में उठाई गई हर आवाज महत्वपूर्ण है। समाज के तौर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा की दौड़ में मासूम बचपन कहीं छूट न जाए। आइए मिलकर इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए समाधान की दिशा में कदम बढ़ाएं।
बच्चों की सुरक्षा पर अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर कर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं, ताकि जागरूकता बढ़े और प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव बने।

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