Garhwa

डंडई के कालीन कारीगरों की जद्दोजहद, साप्ताहिक मजदूरी की मार से जूझ रहा आत्मनिर्भरता का सपना

#गढ़वा #डंडई : हुनरमंद कारीगरों की मेहनत बनी संघर्ष की कहानी – ऋण सहायता से बदल सकती है तस्वीर
  • डंडई प्रखंड के कालीन कारीगरों की मेहनत आत्मनिर्भरता की मिसाल बन सकती है।
  • पूंजी की कमी के कारण उत्पादन और विस्तार पर गंभीर असर पड़ रहा है।
  • प्रमेश राम ने मजदूर से मालिक बनने तक की प्रेरक यात्रा तय की।
  • टीम में उमेश राम, मुन्ना राम, अरुण राम, सर्केंदर राम जैसे कारीगर रोज़ मेहनत कर रहे हैं।
  • साप्ताहिक मजदूरी भुगतान के दबाव से कार्यशील पूंजी पर भारी बोझ।
  • सरकार से मुद्रा योजना या एमएलईडीएमडीबी के तहत ऋण की तत्काल मांग।

गढ़वा जिले के डंडई प्रखंड में कालीन बुनाई का कार्य ग्रामीण आत्मनिर्भरता का नया आयाम बन सकता है, लेकिन पूंजी की कमी इस संभावना को बाधित कर रही है। यहाँ के हुनरमंद कारीगरों ने अपनी कला उत्तर प्रदेश के भदोही से सीखी है, जो कालीन उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। फिर भी, आज ये कारीगर साप्ताहिक मजदूरी के दबाव में काम कर रहे हैं, जिससे उनके विकास की रफ्तार थम गई है।

मजदूर से मालिक तक: प्रमेश राम की प्रेरक यात्रा

इस उद्योग की रीढ़ हैं प्रमेश राम, जिन्होंने 1994 में एक मजदूर के रूप में कालीन बुनाई शुरू की थी। धीरे-धीरे उन्होंने बारीकियों को सीखा और अपनी मेहनत से खुद की कार्यशाला स्थापित की। आज वे 8 से 10 स्थानीय कारीगरों को रोजगार दे रहे हैं और उच्च गुणवत्ता वाले कालीन तैयार कर रहे हैं।

प्रमेश राम ने कहा: “कालीन बनने और बिकने में समय लगता है, लेकिन हमें हर सप्ताह मजदूरी देनी होती है। जब तक बिक्री का पैसा नहीं आता, तब तक साप्ताहिक भुगतान के लिए या तो कर्ज लेना पड़ता है या उत्पादन रोकना पड़ता है।”

उनके यहां कार्यरत उमेश राम, मुन्ना राम, अरुण राम और सर्केंदर राम जैसे कारीगरों की मेहनत से चार कालीन सेट तैयार होते हैं। लेकिन नियमित मजदूरी भुगतान की बाध्यता के कारण कार्यशील पूंजी पर लगातार दबाव बना रहता है।

तत्काल वित्तीय सहायता की सख्त जरूरत

डंडई का यह छोटा उद्योग अब विस्तार की राह पर है, लेकिन कार्यशील पूंजी ऋण और स्थायी पूंजी निवेश के बिना आगे बढ़ना मुश्किल हो गया है। प्रमेश राम ने सरकार और बैंकिंग संस्थानों से प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) और मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड (MLEDMDB) के तहत सब्सिडी वाला ऋण उपलब्ध कराने की अपील की है।

ऐसे ऋण से उन्हें कच्चा माल थोक में खरीदने, लागत कम करने और साप्ताहिक मजदूरी भुगतान के लिए नकदी प्रवाह बनाए रखने में मदद मिलेगी। इससे उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार और बाजार तक सीधी पहुंच बढ़ेगी।

रोजगार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर

यदि वित्तीय सहायता समय पर मिल जाए, तो यह उद्यम 20 से 25 लोगों को अतिरिक्त रोजगार दे सकता है। इससे डंडई प्रखंड की अर्थव्यवस्था में गति आएगी और पलायन की समस्या पर भी अंकुश लगेगा। ग्रामीण इलाकों में ऐसे छोटे उद्योग आत्मनिर्भर भारत अभियान की सच्ची तस्वीर पेश करते हैं, जहाँ स्थानीय संसाधनों से ही बड़ी संभावनाएं खड़ी की जा सकती हैं।

न्यूज़ देखो: आत्मनिर्भरता के लिए वित्तीय सहयोग है अनिवार्य

डंडई के प्रमेश राम जैसे कारीगर झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। प्रशासन और बैंकिंग संस्थानों को चाहिए कि वे ऐसे मेहनती उद्यमियों के लिए विशेष ऋण शिविर आयोजित करें और प्रक्रियाओं को सरल बनाएं। छोटे प्रयास ही बड़े परिवर्तन की नींव होते हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

हुनर को सहारा दें, आत्मनिर्भर भारत बनाएं

ग्रामीण भारत की प्रगति स्थानीय कारीगरों के सशक्तिकरण में छिपी है। अब वक्त है कि सरकार, बैंक और समाज मिलकर इन प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करें। सजग बनें, आत्मनिर्भरता की इस आवाज़ को साझा करें और अपनी राय देकर सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाएं। यही सच्ची देशभक्ति है।

📥 Download E-Paper

यह खबर आपके लिए कितनी महत्वपूर्ण थी?

रेटिंग देने के लिए किसी एक स्टार पर क्लिक करें!

इस खबर की औसत रेटिंग: 0 / 5. कुल वोट: 0

अभी तक कोई वोट नहीं! इस खबर को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

चूंकि आपने इस खबर को उपयोगी पाया...

हमें सोशल मीडिया पर फॉलो करें!

IMG-20251223-WA0009
IMG-20250610-WA0011
1000264265
IMG-20250723-WA0070
IMG-20250925-WA0154
IMG-20251017-WA0018
IMG-20250604-WA0023 (1)

नीचे दिए बटन पर क्लिक करके हमें सोशल मीडिया पर फॉलो करें


Shashi Bhushan Mehta

डंडई, गढ़वा

Related News

Back to top button
error: