
#कोलेबिरा #सांस्कृतिक_मेला : कंजोगा पहाड़ पर आयोजित होने वाला पारंपरिक कनजोगा मेला इस वर्ष 9–10 दिसंबर को भव्य रूप में आयोजित होगा—सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारियाँ अंतिम चरण में।
- कंजोगा पहाड़, कोलेबिरा में 9–10 दिसंबर 2025 को दो दिवसीय भव्य कनजोगा मेला आयोजित होगा।
- आयोजन की जिम्मेदारी नेहरू युवा क्लब कंजोगा मेला समिति द्वारा संभाली जा रही है।
- 9 दिसंबर की रात 8 बजे से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन।
- मंच पर प्रदर्शन करेंगे पवन रॉय, जगदीश बड़ाइक, राजदेव नायक, सुहाना देवी, अंजली देवी, सुनीता नायक और मांदर सम्राट हुलास महतो।
- मेला ब्रिटिश काल से भी पुरानी सांस्कृतिक परंपरा पर आधारित—फसल कटाई के बाद मनाया जाता है।
- मेले की शुरुआत पहान पुजारी द्वारा पूजा और झंडा स्थापना से होगी।
- दूर-दूर से आने वाले व्यापारियों द्वारा सैकड़ों दुकानें, झूले और मनोरंजन के साधन लगाए जाएंगे।
कोलेबिरा प्रखंड के कंजोगा पहाड़ पर होने वाला पारंपरिक और ऐतिहासिक कनजोगा मेला इस वर्ष 9 और 10 दिसंबर को आयोजित किया जा रहा है। नेहरू युवा क्लब कंजोगा मेला समिति की ओर से इसकी तैयारियाँ लगभग पूरी कर ली गई हैं। प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर और आदिवासी परंपरा के वैभव को समेटे यह मेला हर वर्ष क्षेत्र में एक अलग ही उल्लास का माहौल तैयार करता है। इस बार भी विशाल भीड़ और शानदार सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की संभावना है, जो मेले की ऐतिहासिकता को और भव्य बनाएंगी।
मेला आयोजन की तैयारियाँ अंतिम चरण में
नेहरू युवा क्लब कंजोगा मेला समिति पिछले कई सप्ताह से मेले के सफल आयोजन हेतु तैयारियों में जुटी हुई है। क्षेत्र में साफ-सफाई, मेला मैदान की तैयारी, सांस्कृतिक मंच की सजावट और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने का कार्य अब लगभग पूरा कर लिया गया है। समिति सदस्यों के अनुसार, इस वर्ष मेले को और भी आकर्षक रूप दिया गया है।
पहली रात होगा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम
9 दिसंबर की रात 8 बजे से भव्य सांस्कृतिक संध्या आयोजित की जाएगी।
इस आयोजन में कई नामचीन कलाकार मंच को सजाएंगे।
मंच पर प्रस्तुति देने वाले कलाकार
- पवन रॉय – झारखंड के लोकप्रिय नागपुरी गायक
- जगदीश बड़ाइक – लोक संगीत के चर्चित कलाकार
- राजदेव नायक – जनप्रिय सांस्कृतिक कलाकार
- सुहाना देवी, अंजली देवी, सुनीता नायक – लोकगायन और पारंपरिक गीतों की प्रसिद्ध कलाकार
- मांदर सम्राट हुलास महतो – झारखंडी तालवाद्य का लोकप्रिय नाम
- विशेष प्रस्तुति: लिटिल स्टार म्यूजिकल ग्रुप, चमरू महली
इन कलाकारों की उपस्थिति से यह कार्यक्रम स्थानीय संस्कृति और लोककला का अनोखा संगम बनने वाला है।
मेला सदियों पुरानी परंपरा से जुड़ा
कनजोगा मेला ब्रिटिश काल से भी पूर्व से आयोजित होता आ रहा है।
हिंदू पंचांग के अनुसार पुष्प पंचमी पर मनाया जाने वाला यह उत्सव फसल कटाई के बाद ग्रामीणों के सामूहिक उल्लास और मिलन का प्रतीक है।
कनजोगा पहाड़ का प्राकृतिक सौंदर्य—हरे-भरे बगीचे, शांत तालाब और पहाड़ी परिदृश्य—आगंतुकों के लिए अद्भुत अनुभव प्रदान करता है। पहाड़ की ऊँचाई से दिखाई देने वाला दृश्य हर बार लोगों को आकर्षित करता है।
पारंपरिक शुरुआत: जौउदरा नृत्य और पूजा-अर्चना
मेले की शुरुआत एक विशिष्ट पारंपरिक प्रक्रिया से होती है।
मेले से एक दिन पहले गाँव के आदिवासी समुदाय द्वारा आखड़ा स्थल पर जौउदरा नृत्य किया जाता है। इसके बाद पूरे गाँव का पारंपरिक भ्रमण होता है।
अगली सुबह पहान पुजारी पहाड़ देवता और प्रकृति की पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात झंडा स्थापित कर मेले की औपचारिक शुरुआत की जाती है।
व्यापारियों और बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र
कनजोगा मेला न सिर्फ सांस्कृतिक, बल्कि आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
दूर-दराज के क्षेत्रों से व्यापारी यहाँ दुकानें लगाने आते हैं—
मिठाइयाँ, खिलौने, कपड़े, बर्तन, घरेलू सामान, हस्तशिल्प और लोक उत्पादों की सैकड़ों दुकानें मेले की शोभा बढ़ाती हैं।
बच्चों के लिए झूले, खेल-तमाशे और मनोरंजन के अन्य साधन विशेष आकर्षण का केंद्र रहते हैं।
सामाजिक एकता और क्षेत्रीय संस्कृति का श्रेष्ठ उदाहरण
पहली रात के सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रखंड के प्रशासनिक पदाधिकारी, जनप्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं।
यह आयोजन न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि समुदाय को जोड़ने, परंपरा को संरक्षित करने और युवा पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर से परिचय कराने का अवसर भी प्रदान करता है।
न्यूज़ देखो: संस्कृति की धड़कन बना कंजोगा मेला
कंजोगा मेला यह दर्शाता है कि परंपराओं की शक्ति कितनी गहरी होती है और समाज को एक साथ बांधे रखने में संस्कृति की क्या भूमिका है। इस आयोजन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और कलाकारों को मंच मिलता है। प्रशासन और समिति की जिम्मेदार भूमिका इस विरासत को संरक्षित रखने में अहम साबित होती है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
अपनी संस्कृति को जानें—अपनी जड़ों से जुड़ें
कनजोगा मेला सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि समाज के आत्म-सम्मान और साझा विरासत का प्रतीक है।
इस वर्ष आप भी इस परंपरा का हिस्सा बनें, अपने परिवार व बच्चों को साथ लाएँ और संस्कृति का वास्तविक सौंदर्य करीब से महसूस करें।





