Editorial

आजकल के रिश्ते: स्टोरी में प्यार, रियल लाइफ में साइलेंट मोड

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#सोशलमीडिया #रिश्तोंकीहकीकत : डिजिटल दौर में प्यार अब नोटिफिकेशन और ब्लू टिक तक सीमित हो चुका है।
  • रिश्तों की गहराई अब “लास्ट सीन” और “ब्लू टिक” तक सिमट चुकी है।
  • सोशल मीडिया ने दिलों को करीब किया, पर संवेदनाएं दूर कर दीं।
  • डॉ. रीता शर्मा ने कहा—“लोग अब महसूस नहीं करते, बस पोस्ट करते हैं।”
  • साइबर-साइकोलॉजिस्ट प्रीति वर्मा के अनुसार अब रिश्ते “इंस्टेंट” हो चुके हैं।
  • विशेषज्ञों ने सलाह दी—फेक रिश्तों से दूरी बनाएं, सच्चे जुड़ाव को प्राथमिकता दें।

कभी रिश्ते चिट्ठियों में बसते थे, अब नोटिफिकेशन में टिके हैं। पहले प्यार का मतलब था इंतज़ार और एहसास, अब बस “Last seen recently” देखकर संतोष मिल जाता है। सोशल मीडिया ने जहां दूरियों को घटाया, वहीं दिलों के बीच की दूरी और बढ़ा दी। अब सब ऑनलाइन हैं, मगर कोई दिल से कनेक्टेड नहीं।

रिश्तों की भावनाएं अब डिजिटल फ्रेम में

आज के दौर में लोग प्यार जताने के बजाय पोस्ट करने में व्यस्त हैं। कभी किसी का “कैसे हो?” दिल से पूछा जाता था, अब बस एक औपचारिक “ऑल गुड भाई!” से जवाब मिलता है। रिश्तों में अब वो गहराई नहीं रही, जो कभी एक चाय की प्याली और दो मुस्कुराहटों में बसी थी।

डॉ. रीता शर्मा ने कहा: “आज रिश्ते कैमरे के फ्रेम में फिट हैं, दिल के फ्रेम से आउट हो चुके हैं। लोग अब महसूस नहीं करते, बस पोस्ट करते हैं।”

दिखावे के रिश्तों का दौर

आज दोस्ती भी “डिजिटल मार्केटिंग” बन चुकी है—जो दिखता है वही बिकता है। हर ‘लाइक’ अब सच्चाई नहीं, बल्कि “मैं भी याद हूँ” का दिखावा है। हर ‘कमेंट’ बस एक “पब्लिक इमोशन” है। सबसे दर्दनाक बात यह है कि जो लोग सबसे ज़्यादा साथ दिखते हैं, वही अक्सर सबसे पहले म्यूट या ब्लॉक करते हैं।

साइबर-साइकोलॉजिस्ट प्रीति वर्मा ने कहा: “सोशल मीडिया ने रिश्तों को इंस्टेंट बना दिया है। इंस्टेंट कनेक्शन, इंस्टेंट फीलिंग, इंस्टेंट ब्रेकअप। मगर दिल? वो कभी इंस्टेंट नहीं होता।”

रील्स जैसी बन गई है ज़िंदगी

आज के रिश्ते रील्स की तरह आकर्षक, एडिटेड और फास्ट-फॉरवर्डेड हैं। “टेक केयर” सुनने पर जो दिल धड़कता था, अब वही ब्लू टिक देखकर रुक जाता है। एक ओर सोशल मीडिया पर कपल गोल्स की तस्वीरें वायरल होती हैं, वहीं दूसरी ओर कोई अपने पुराने चैट डिलीट कर रहा होता है।

सच्चे रिश्ते अब भी ज़िंदा हैं

डिजिटल जंगल में कुछ ऐसे लोग अब भी हैं जो आपकी प्रोफाइल नहीं, आपकी परेशानी देखते हैं। जो आपकी स्टोरी पर हार्ट नहीं, आपके दिल की बात सुनते हैं। यही असली रिश्ते हैं — जो वाई-फाई नहीं, बल्कि दिल के सिग्नल से कनेक्टेड हैं।

विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों ने लोगों को झूठे स्माइल, फेक “ब्रदर-फ्रेंड” और दिखावटी रिश्तों से दूरी बनाए रखने की सलाह दी है। उनका कहना है कि सच्चे लोग भले कम मिलें, पर वही ज़िंदगी की असली वेल्यू हैं। अकेले रहना कभी-कभी बेहतर होता है, बनिस्बत किसी झूठे साथ के।

न्यूज़ देखो: डिजिटल रिश्तों की सच्चाई

यह कहानी सिर्फ सोशल मीडिया की नहीं, बल्कि हमारे समाज की सोच का आईना है। टेक्नोलॉजी ने हमें सुविधाएं दीं, लेकिन असली संवाद छीन लिया। अब वक्त है कि हम रिश्तों को फिर से मानवीय बनाएं, न कि सिर्फ डिजिटल।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

दिल से जुड़े, सिर्फ स्क्रीन से नहीं

अब ज़रूरत है कि हम लाइक्स और फॉलोअर्स से ऊपर उठकर सच्चे इंसानी जुड़ाव को महत्व दें। क्योंकि हर ‘लाइक’ प्यार नहीं होता, हर ‘कमेंट’ अपनापन नहीं होता, और हर ‘फॉलोअर’ दोस्त नहीं होता।
रिश्तों को फिर से महसूस कीजिए, साझा कीजिए, और उन्हें जिए—ऑनलाइन नहीं, दिल से।
अपनी राय कमेंट करें और इस विचार को दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि रिश्तों में फिर से सच्चाई लौटे।

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Ramprawesh Gupta

महुवाडांड, लातेहार

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