
#गढ़वा #दुर्घटना : मुंबई से घर लौट रहे इरशाद अंसारी की ट्रेन में बिगड़ी तबीयत, परिजनों पर टूटा दुखों का पहाड़
- कांडी प्रखंड के राणाडीह पंचायत कुरकुट्टा गांव का निवासी इरशाद अंसारी की ट्रेन में मौत।
- उम्र करीब 28 वर्ष, पेशे से मजदूर था।
- मुंबई में काम करते वक्त बीमारी से जूझ रहा था।
- घर लौटते समय सीने में दर्द के कारण सफर के बीच ही तोड़ा दम।
- पीछे रह गईं पत्नी, दो बेटियां और बूढ़ी मां, घर में कोहराम।
गढ़वा जिले के कांडी प्रखंड अंतर्गत राणाडीह पंचायत के कुरकुट्टा गांव का 28 वर्षीय इरशाद अंसारी, जो लल्लू मियां का बेटा था, शुक्रवार सुबह (22 अगस्त 2025) दर्दनाक हादसे का शिकार हो गया। मजदूरी करने के लिए एक माह पूर्व मुंबई गया इरशाद बीमार पड़ गया था। स्थानीय डॉक्टरों से इलाज के बाद भी तबीयत में सुधार नहीं हुआ। इसी बीच उसने गांव लौटने का फैसला किया।
ट्रेन में ही बिगड़ी तबीयत
मित्रों और सहकर्मियों ने उसे घर भेजने के लिए ट्रेन में बैठा दिया। सफर शुरू होने के कुछ ही घंटे बाद अचानक उसकी तबीयत बेहद खराब हो गई। इरशाद ने फोन पर परिजनों को आखिरी बार कहा कि उसकी हालत गंभीर है और अब शायद वह नहीं बचेगा। सीने में दर्द बढ़ने के कुछ ही देर बाद उसकी मौत हो गई।
गरीब परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
इरशाद एक बेहद गरीब परिवार से था। उसके पीछे बूढ़ी मां, पत्नी और दो छोटी बेटियां हैं। परिवार की हालत पहले ही कमजोर थी और अब कमाने वाले बेटे के असमय निधन से परिवार पूरी तरह बेसहारा हो गया है। गांव में मातम का माहौल है और हर कोई परिवार को ढांढस बंधाने में लगा है। ग्रामीणों का कहना है कि इतनी गरीबी में बच्चों और मां की परवरिश बड़ी चुनौती होगी।
शव का इंतजार और गांव में सन्नाटा
शुक्रवार देर रात तक इरशाद का शव गांव पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। गांव कुरकुट्टा में हर घर शोक में डूबा है। लोग इरशाद की मां और उसकी बेटियों को देख भावुक हो उठ रहे हैं।
न्यूज़ देखो: समाज की जिम्मेदारी और मदद की जरूरत
इरशाद अंसारी की मौत सिर्फ एक परिवार का नुकसान नहीं बल्कि समाज के लिए भी चिंता का विषय है। प्रवासी मजदूर मेहनत कर परिवार का सहारा बनते हैं, लेकिन बीमारियों और असमय मौत से उनके परिजन बेसहारा हो जाते हैं। ऐसे समय में समाज, सरकार और प्रशासन को आगे आकर आर्थिक और सामाजिक मदद करनी चाहिए।
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एकजुट होकर मदद करें
अब समय है कि हम सब मिलकर इस गरीब परिवार की मदद के लिए आगे आएं। प्रशासन से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों तक, सबको परिवार के पुनर्वास की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। आप भी अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को साझा करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मदद के लिए प्रेरित हों।