
#सिमडेगा #धार्मिक_आयोजन : तुलसी पूजन के माध्यम से श्रद्धा, सद्भाव और पर्यावरण संरक्षण का सामूहिक संदेश।
सिमडेगा जिले के कौनमेजरा गांव में गुरुवार को तुलसी और शालिग्राम देवता की पूजा पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से की गई। ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना कर प्रकृति संरक्षण और आपसी सद्भाव का संदेश दिया। आयोजन का नेतृत्व मंगल बडाइक ने किया, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण शामिल हुए। कार्यक्रम का उद्देश्य धार्मिक आस्था के साथ तुलसी के औषधीय और पर्यावरणीय महत्व को रेखांकित करना रहा।
- कौनमेजरा गांव में तुलसी और शालिग्राम पूजन का आयोजन।
- मंगल बडाइक के नेतृत्व में ग्रामीणों की सामूहिक सहभागिता।
- 25 दिसंबर को तुलसी पूजन के विशेष महत्व पर प्रकाश।
- तुलसी के औषधीय गुणों और पर्यावरणीय भूमिका पर चर्चा।
- पूजन के बाद सामूहिक भजन-कीर्तन का आयोजन।
सिमडेगा जिले के कौनमेजरा गांव में तुलसी और शालिग्राम देवता की पूजा पूरे श्रद्धा, आस्था और भक्ति भाव के साथ संपन्न हुई। इस धार्मिक आयोजन में ग्रामीणों ने एकजुट होकर पूजा-अर्चना की और प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त किया। कार्यक्रम ने धार्मिक परंपराओं के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सद्भाव का संदेश भी दिया।
पूजन कार्यक्रम का नेतृत्व मंगल बडाइक ने किया, जिनके मार्गदर्शन में ग्रामीणों ने पूरे विधि-विधान से पूजा संपन्न की। आयोजन स्थल पर सुबह से ही भक्तों की उपस्थिति शुरू हो गई थी और वातावरण भक्ति रस से सराबोर नजर आया।
तुलसी पूजन का धार्मिक और सामाजिक महत्व
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंगल बडाइक ने कहा कि तुलसी पूजन भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है। उन्होंने बताया कि 25 दिसंबर को तुलसी पूजन का विशेष महत्व है, जो हमें प्रकृति और मानव जीवन के आपसी संबंध को समझने की प्रेरणा देता है।
मंगल बडाइक ने कहा: “तुलसी केवल एक पौधा नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य और प्रकृति संरक्षण का आधार है। तुलसी, पीपल और बर जैसे वृक्षों का संरक्षण कर हम स्वस्थ समाज और सुरक्षित पर्यावरण की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान समय में जब पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, तब धार्मिक आयोजनों के माध्यम से प्रकृति संरक्षण का संदेश देना और भी आवश्यक हो जाता है।
औषधीय गुणों पर डाला गया प्रकाश
पूजन के दौरान तुलसी के औषधीय गुणों और मानव जीवन में इसके महत्व पर विस्तार से चर्चा की गई। वक्ताओं ने बताया कि तुलसी न केवल धार्मिक दृष्टि से पूजनीय है, बल्कि आयुर्वेद में इसे अमृत तुल्य माना गया है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, श्वसन संबंधी बीमारियों और मानसिक तनाव को कम करने में सहायक मानी जाती है।
ग्रामीणों को यह भी बताया गया कि तुलसी जैसे पौधों का संरक्षण सीधे तौर पर मानव स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है और इसके प्रति जागरूकता फैलाना समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
विधि-विधान से हुई पूजा-अर्चना
तुलसी और शालिग्राम भगवान की पूजा विधि-विधान से संपन्न कराई गई। इस अवसर पर पुरोहित के रूप में छोटू राम बड़ाइक ने मंत्रोच्चारण के साथ पूजा करवाई। यजमान की भूमिका में सुकांति देवी, बृजपाल मेहर, गोवर्धन महतो और विनय बडाइक शामिल रहे।
पूजा के दौरान पूरे गांव में भक्ति का माहौल बना रहा और श्रद्धालु पूरी आस्था के साथ पूजा में शामिल हुए।
भजन-कीर्तन से मजबूत हुआ भाईचारा
पूजन के पश्चात सामूहिक भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया, जिसमें ग्रामीणों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भजन-कीर्तन के माध्यम से आपसी प्रेम, भाईचारे और सामाजिक एकता का संदेश दिया गया। कार्यक्रम ने यह दर्शाया कि धार्मिक आयोजन समाज को जोड़ने का सशक्त माध्यम बन सकते हैं।
इस अवसर पर लेखा कुमारी, सोनी देवी, मोनिका कुमारी, होलिका कुमारी, लक्ष्मी कुमारी सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण महिला-पुरुष उपस्थित रहे और आयोजन को सफल बनाया।
ग्रामीण परंपरा और पर्यावरण का संगम
कौनमेजरा में आयोजित यह तुलसी पूजन कार्यक्रम ग्रामीण परंपरा, धार्मिक आस्था और पर्यावरण चेतना का सुंदर उदाहरण बनकर सामने आया। ऐसे आयोजन न केवल सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखते हैं, बल्कि नई पीढ़ी को प्रकृति के प्रति जिम्मेदार बनने की प्रेरणा भी देते हैं।
ग्रामीणों ने संकल्प लिया कि वे अपने आसपास के वृक्षों और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करेंगे और आने वाली पीढ़ियों को भी इसके लिए जागरूक करेंगे।

न्यूज़ देखो: आस्था के साथ पर्यावरण की सीख
कौनमेजरा का यह आयोजन दिखाता है कि धार्मिक परंपराएं केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को सही दिशा देने का माध्यम भी हैं। तुलसी पूजन के जरिए पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना आज के समय की बड़ी जरूरत है। सवाल यह है कि क्या ऐसे आयोजनों से व्यापक स्तर पर हरित सोच को बढ़ावा मिल पाएगा? हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
प्रकृति से जुड़कर ही सुरक्षित होगा भविष्य
तुलसी जैसे पौधों का संरक्षण केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि जीवन रक्षा का संकल्प है। जब गांव और समाज मिलकर प्रकृति की रक्षा का बीड़ा उठाते हैं, तभी संतुलित और स्वस्थ भविष्य संभव होता है।
आपके क्षेत्र में ऐसे आयोजनों की क्या भूमिका है? अपनी राय कमेंट में साझा करें, इस खबर को आगे बढ़ाएं और प्रकृति संरक्षण के संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं।





