
#हुसैनाबाद #गांधीप्रतिमाविवाद : जनआक्रोश के बाद प्रतिमा हटी, लेकिन हटाने की प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल।
पलामू जिले के हुसैनाबाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विद्रूप प्रतिमा को लेकर उठे जनआक्रोश के बाद प्रशासन ने प्रतिमा हटाने की कार्रवाई तो की, लेकिन इसके तरीके ने नई बहस खड़ी कर दी। गांधी चौक से प्रतिमा को सम्मानजनक ढंग से हटाने के बजाय साधारण ठेले पर ढोया गया। इस पूरे घटनाक्रम में जिम्मेदार अधिकारियों की अनुपस्थिति ने प्रशासन की संवेदनशीलता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। यह मामला अब केवल प्रतिमा हटाने तक सीमित नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही से भी जुड़ गया है।
- हुसैनाबाद गांधी चौक से महात्मा गांधी की विद्रूप प्रतिमा हटाई गई।
- जनआक्रोश और मीडिया दबाव के बाद प्रशासन ने की कार्रवाई।
- प्रतिमा को बिना आवरण, ठेले पर लादकर ले जाया गया।
- मौके पर नगर पंचायत के जिम्मेदार अधिकारी अनुपस्थित रहे।
- नागरिकों ने निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग उठाई।
हुसैनाबाद में गांधी चौक पर स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा को लेकर पहले ही स्थानीय नागरिकों में भारी असंतोष था। प्रतिमा के स्वरूप को लेकर लोग इसे राष्ट्रपिता के सम्मान के विपरीत बता रहे थे। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में मामला सामने आने के बाद प्रशासन पर दबाव बढ़ा और अंततः प्रतिमा हटाने का निर्णय लिया गया। हालांकि, जिस तरीके से यह कार्रवाई की गई, उसने आक्रोश को और गहरा कर दिया।
प्रतिमा हटाने की प्रक्रिया पर सवाल
स्थानीय नागरिकों के अनुसार, प्रतिमा को हटाते समय न तो किसी प्रकार का आवरण लगाया गया और न ही किसी सम्मानजनक वाहन की व्यवस्था की गई। गांधी जी जैसी महान विभूति की प्रतिमा को साधारण ठेले पर लादकर सार्वजनिक मार्ग से ले जाना लोगों को बेहद आहत कर गया। कई नागरिकों ने इसे प्रतिमा हटाने के नाम पर दूसरा अपमान करार दिया।
जिम्मेदार अधिकारियों की गैरमौजूदगी
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी सहित कोई भी वरिष्ठ या जिम्मेदार अधिकारी मौके पर मौजूद नहीं था। इससे आम जनता में यह संदेश गया कि प्रशासन इस संवेदनशील मुद्दे को गंभीरता से लेने के बजाय केवल एक औपचारिक कार्यवाही मानकर निपटा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि अधिकारी स्वयं मौजूद रहते और सम्मानजनक प्रक्रिया अपनाई जाती, तो हालात इतने तनावपूर्ण नहीं होते।
प्रतिमा स्थापना पर भी उठे सवाल
नागरिकों ने आरोप लगाया कि गांधी जी की प्रतिमा स्थापना को महज एक सरकारी योजना की तरह देखा गया।
लोगों का कहना है कि
- प्रतिमा का स्वरूप और गुणवत्ता निम्न स्तर की थी।
- ऐतिहासिक और वैचारिक गरिमा का कोई ध्यान नहीं रखा गया।
- योजना को केवल कागजों में पूरा दिखाने और राशि उपयोग दर्शाने पर जोर रहा।
स्थानीय बुद्धिजीवियों का मानना है कि महापुरुषों की प्रतिमाएं केवल सजावटी वस्तु नहीं होतीं, बल्कि वे समाज की चेतना और मूल्यों का प्रतीक होती हैं।
जागरूक जनता ने रोकी कथित मनमानी
हालांकि, हुसैनाबाद की सजग और जागरूक जनता ने समय रहते विरोध दर्ज कर प्रशासन की कथित लापरवाही और गलत मंशा पर विराम लगाया। नागरिकों के संगठित विरोध के कारण ही प्रतिमा हटाने का फैसला संभव हो सका, भले ही उसकी प्रक्रिया सवालों के घेरे में रही।
निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की मांग
स्थानीय नागरिकों ने एक स्वर में मांग की है कि
- प्रतिमा निर्माण,
- प्रतिमा स्थापना,
- और प्रतिमा हटाने की पूरी प्रक्रिया
की निष्पक्ष जांच कराई जाए। साथ ही जिन अधिकारियों और एजेंसियों ने लापरवाही बरती है, उनके खिलाफ विधिसम्मत और कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
नागरिकों की दो टूक
स्थानीय लोगों का स्पष्ट कहना है कि महापुरुष केवल पत्थर या धातु की प्रतिमाओं तक सीमित नहीं होते। वे समाज की आत्मा, विचार और मूल्य होते हैं। उनके सम्मान से किसी भी प्रकार का समझौता न तो स्वीकार्य है और न ही बर्दाश्त किया जाएगा।

न्यूज़ देखो: सम्मान और संवेदनशीलता की कसौटी
हुसैनाबाद का यह मामला दर्शाता है कि सरकारी योजनाओं में संवेदनशीलता का अभाव किस तरह जनभावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। प्रतिमा हटाना जरूरी हो सकता है, लेकिन उसका तरीका कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस घटना से सबक लेगा और जिम्मेदारों पर कार्रवाई करेगा। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
महापुरुषों का सम्मान, समाज की जिम्मेदारी
गांधी जी जैसे महापुरुषों का सम्मान केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सामूहिक नैतिक दायित्व है। सजग रहें, सवाल पूछें और जनभावनाओं की रक्षा के लिए एकजुट रहें। इस खबर पर अपनी राय साझा करें, इसे आगे बढ़ाएं और सम्मान की इस लड़ाई को मजबूती दें।





