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फाइलों में दबा रहा अदालत का आदेश, खेतों में चलती रही गतिविधियां—हुसैनाबाद में दो माह बाद लागू हुआ यथास्थिति निर्देश

#हुसैनाबाद #न्यायिक_आदेश : अदालत के स्पष्ट निर्देश के बावजूद प्रशासनिक देरी से बढ़ा भूमि विवाद।

हुसैनाबाद में व्यवहार न्यायालय डालटनगंज के यथास्थिति आदेश के बावजूद विवादित भूमि पर दो माह तक गतिविधियां जारी रहीं। 12 जून 2025 को जारी आदेश प्रशासनिक फाइलों में दबा रहा और खेतों में धान की कटाई होती रही। आदेश की जानकारी अधिकारियों को समय पर मिली, फिर भी नोटिस चिपकाने में दिसंबर तक का इंतजार किया गया। यह मामला न्यायिक आदेशों के क्रियान्वयन और प्रशासनिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

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  • व्यवहार न्यायालय डालटनगंज ने 12 जून 2025 को यथास्थिति का आदेश दिया।
  • आदेश विविध वाद संख्या 205 (राजेन्द्र राम बनाम छेदी पासवान) से जुड़ा।
  • ग्राम बेलविगहा और ग्राम लमार की कुल 11.49 एकड़ भूमि विवादित।
  • प्रशासन को सूचना मिलने के बावजूद 24 दिसंबर 2025 तक नोटिस नहीं चिपका।
  • आदेश के दौरान धान की कटाई जारी रहने का आरोप।

हुसैनाबाद अनुमंडल में न्यायिक आदेशों के अनुपालन को लेकर एक गंभीर मामला सामने आया है। व्यवहार न्यायालय डालटनगंज द्वारा विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का स्पष्ट आदेश दिए जाने के बावजूद करीब दो महीने तक जमीनी स्तर पर उसका पालन नहीं हुआ। इस दौरान विवादित खेतों में कृषि गतिविधियां चलती रहीं, जिससे क्षेत्र में तनाव की स्थिति बनी रही।

क्या था न्यायालय का आदेश

व्यवहार न्यायालय, डालटनगंज ने 12 जून 2025 को विविध वाद संख्या 205 (राजेन्द्र राम एवं अन्य बनाम छेदी पासवान) में आदेश पारित करते हुए कहा था कि विवादित भूमि पर किसी भी प्रकार की गतिविधि नहीं की जाएगी। अदालत का निर्देश था कि मामले के निस्तारण तक यथास्थिति बनाए रखी जाए।

यह आदेश ग्राम बेलविगहा की 5.29 एकड़ और ग्राम लमार की 6.20 एकड़ भूमि से संबंधित था। अदालत ने साफ किया था कि आदेश का उल्लंघन न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आएगा।

प्रशासन तक पहुंचा आदेश, फिर भी कार्रवाई नहीं

न्यायालय के आदेश की आधिकारिक सूचना 18 सितंबर 2025 को कार्यपालक दंडाधिकारी, हुसैनाबाद को प्राप्त हुई। इसके बाद 13 अक्टूबर 2025 को थाना प्रभारी और अंचल अधिकारी को लिखित निर्देश भेजे गए, जो 14 अक्टूबर को संबंधित कार्यालयों में प्राप्त भी हो गए।

इसके बावजूद सवाल यह उठता है कि जब आदेश विधिवत प्राप्त हो चुका था, तो फिर विवादित स्थल पर निषेधाज्ञा का नोटिस 24 दिसंबर 2025 तक क्यों नहीं चिपकाया गया।

खेतों में चलती रही गतिविधियां

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि आदेश के बावजूद विवादित भूमि पर धान की कटाई होती रही। उनका कहना है कि प्रशासनिक अमला स्थिति से अवगत था, फिर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इससे न केवल न्यायालय के आदेश की अवहेलना हुई, बल्कि क्षेत्र में तनाव और टकराव की आशंका भी बनी रही।

ग्रामीणों के अनुसार, उन्होंने कई बार थाना और अंचल कार्यालय को मौखिक रूप से सूचना दी, लेकिन न तो मौके पर रोक लगी और न ही दोषियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई की गई।

मौन शिकायतें, लिखित कार्रवाई का अभाव

ग्रामीणों का यह भी कहना है कि प्रशासन को बार-बार अवगत कराने के बावजूद कोई लिखित नोटिस या दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई। इससे लोगों में यह संदेश गया कि या तो आदेश को गंभीरता से नहीं लिया गया, या फिर किसी को मौन संरक्षण दिया जा रहा है।

कानून की नजर में अवमानना

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यथास्थिति आदेश का उल्लंघन सीधे तौर पर न्यायालय की अवमानना है। इसमें संबंधित पक्षों के साथ-साथ आदेश लागू न कराने वाले अधिकारियों की भूमिका भी जांच के दायरे में आती है। ऐसे मामलों में दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान स्पष्ट रूप से मौजूद है।

प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल

इस पूरे प्रकरण ने प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि आदेश समय पर लागू होता, तो विवाद की स्थिति नियंत्रित रह सकती थी। देरी ने न केवल कानून की गरिमा को ठेस पहुंचाई, बल्कि आम नागरिकों के न्याय पर भरोसे को भी कमजोर किया।

अब आगे क्या

अब जबकि नोटिस चिपकाया जा चुका है, निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या आदेश के उल्लंघन की जांच होगी और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी। या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।

न्यूज़ देखो: जब आदेश कागजों में सिमट जाए

यह मामला दिखाता है कि न्यायिक आदेश तभी प्रभावी होते हैं, जब प्रशासन उन्हें समय पर लागू करे। दो माह की देरी ने कानून की गंभीरता पर सवाल खड़े किए हैं। क्या संबंधित अधिकारियों से स्पष्टीकरण लिया जाएगा? क्या अवमानना की कार्रवाई होगी? हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

कानून का सम्मान, समाज की जिम्मेदारी

न्यायालय के आदेश लोकतंत्र की रीढ़ होते हैं। यदि उनका पालन नहीं होगा, तो आम नागरिक का भरोसा टूटेगा। जरूरी है कि प्रशासनिक व्यवस्था पारदर्शी और जवाबदेह बने। अपनी राय साझा करें, खबर को आगे बढ़ाएं और कानून के सम्मान की इस आवाज़ को मजबूत करें।

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Yashwant Kumar

हुसैनाबाद, पलामू

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