
#चंदवा #ग्रामीणसमस्या : आजादी के दशकों बाद भी जिलिंग गांव तक पक्की सड़क नहीं पहुंच सकी।
लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड अंतर्गत पंचायत हुटाप का जिलिंग गांव आजादी के 78 वर्ष बाद भी सड़क सुविधा से वंचित है। राष्ट्रीय उच्च मार्ग एनएच 39 से महज दो किलोमीटर दूरी पर बसे इस आदिवासी बहुल गांव तक पहुंचने के लिए आज भी कोई पक्की सड़क नहीं है। बरसात के दिनों में स्थिति और भयावह हो जाती है, जिससे ग्रामीणों का जनजीवन प्रभावित होता है। सड़क निर्माण की मांग को लेकर ग्रामीणों ने सामूहिक बैठक कर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से हस्तक्षेप की अपील की है।
- चंदवा प्रखंड के जिलिंग गांव तक आज तक पक्की सड़क नहीं।
- एनएच 39 से मात्र 2 किलोमीटर दूर है गांव।
- 150 से अधिक परिवार, लगभग 700 की आबादी प्रभावित।
- बीच में आधा किलोमीटर वन क्षेत्र, रास्ता सबसे बड़ी बाधा।
- ग्रामीणों ने विधायक और जिला प्रशासन से की सड़क निर्माण की मांग।
लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड में बुनियादी सुविधाओं की कमी एक बार फिर सामने आई है। पंचायत हुटाप के अंतर्गत आने वाला जिलिंग गांव, जो प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है, आज भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है। गांव के लोग दशकों से इस समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है।
राष्ट्रीय राजमार्ग के पास, फिर भी सड़क नहीं
जिलिंग गांव की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यह चंदवा से कुडू़ जाने वाली सड़क और अमझरिया घाटी के पास स्थित है। गांव तक पहुंचने का मार्ग एनएच 39 से होकर जाता है, जिसकी कुल दूरी लगभग 2 किलोमीटर है।
हालांकि, इस मार्ग में लगभग आधा किलोमीटर क्षेत्र वन भूमि में पड़ता है, जिसके कारण सड़क निर्माण अब तक नहीं हो सका है। इसी वजह से ग्रामीणों को आज भी कच्चे, उबड़-खाबड़ रास्ते से पैदल आना-जाना पड़ता है।
आदिवासी बहुल गांव, सुविधाओं का अभाव
जिलिंग गांव में लगभग 150 घर हैं और आबादी करीब 700 के आसपास है। गांव में अधिकांश लोग आदिवासी समुदाय से आते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि सड़क नहीं होने के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों पर सीधा असर पड़ रहा है। आपात स्थिति में मरीजों को अस्पताल पहुंचाना बेहद मुश्किल हो जाता है। कई बार बीमार लोगों को चारपाई पर उठाकर मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है।
बरसात में और बिगड़ जाती है हालत
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, बरसात के मौसम में हालात और भी बदतर हो जाते हैं। कीचड़ और फिसलन के कारण रास्ता पूरी तरह चलने लायक नहीं रहता।
हर साल ग्रामीण सामूहिक श्रमदान कर किसी तरह पैदल चलने योग्य रास्ता बनाते हैं, लेकिन यह अस्थायी समाधान ही साबित होता है। पक्की सड़क के अभाव में गांव सामाजिक रूप से भी कटता जा रहा है।
सामाजिक जीवन पर भी असर
ग्रामीणों ने बताया कि सड़क नहीं होने के कारण अब लोग इस गांव से रिश्तेदारी जोड़ने से भी कतराने लगे हैं। आवागमन की कठिनाइयों के चलते सामाजिक और आर्थिक गतिविधियां सीमित हो गई हैं।
इसके बावजूद यह गांव अमझरिया पुलिस पिकेट के बगल में स्थित है, फिर भी बुनियादी सुविधा से वंचित है, जो प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है।
ग्रामीणों की सामूहिक बैठक
समस्या को लेकर ग्रामीणों ने हाल ही में एक सामूहिक बैठक आयोजित की। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सड़क निर्माण के लिए स्थानीय विधायक और जिला प्रशासन से औपचारिक मांग की जाएगी।
ग्रामीणों ने प्रशासन से आग्रह किया कि वन विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर जल्द से जल्द सड़क निर्माण का रास्ता निकाला जाए।
बैठक में उपस्थित ग्रामीण
बैठक में चमर गंझू, फागु मुंडा, दलभंजन सिंह, सत्तन गंझू, मुटूर गंझू, अमरदीप गंझू, नारायण गंझू, सुरेंद्र गंझू, जगदीश गंझू, हुलास गंझू, लक्ष्मण लोहार, छोटेलाल गंझू, बालदेव गंझू, देवठान गंझू, कौशल्या देवी, फूलन देवी, ननकी देवी सहित सैकड़ों ग्रामीण मौजूद थे।

न्यूज़ देखो: विकास के दावों पर सवाल
एनएच के पास बसे गांव का 78 साल बाद भी सड़क से वंचित रहना विकास के दावों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह मामला सिर्फ एक गांव का नहीं, बल्कि उन सैकड़ों बस्तियों का प्रतीक है जो आज भी बुनियादी सुविधाओं की बाट जोह रही हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन इस ओर कितनी तत्परता दिखाता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सड़क सिर्फ रास्ता नहीं, सम्मान है
सड़क का मतलब केवल आवागमन नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक जीवन से जुड़ा सवाल है। जिलिंग के ग्रामीण अब सिर्फ आश्वासन नहीं, ठोस कार्रवाई चाहते हैं।
आप क्या सोचते हैं—क्या ऐसे गांवों तक विकास पहुंचाना प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए? अपनी राय कमेंट करें, खबर साझा करें और इस मुद्दे को और लोगों तक पहुंचाएं।





