
#गुमला #आपदा_सहायता : असंगठित कामगार कांग्रेस की पहल से पीड़ित परिवार को मिली आर्थिक राहत।
गुमला जिले के सिसई प्रखंड अंतर्गत सोगरा डाड़टोली में वज्रपात से पति–पत्नी की मौत के सात महीने बाद उनके आश्रित परिवार को 4 लाख रुपये की मुआवज़ा राशि प्रदान की गई। लंबे समय से सहायता का इंतज़ार कर रहे परिवार को यह राहत असंगठित कामगार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष मुख्तार आलम की पहल से संभव हो सकी। इस दुर्घटना में तीन छोटे बच्चे अनाथ हो गए थे और उनकी बुजुर्ग दादी पर पालन-पोषण का पूरा बोझ आ गया था। यह मामला प्रशासनिक संवेदनशीलता और सामाजिक हस्तक्षेप के महत्व को उजागर करता है।
- सिसई प्रखंड के सोगरा डाड़टोली में वज्रपात से पति–पत्नी की मौत हुई थी।
- घटना के सात महीने बाद आश्रित को 4 लाख रुपये मुआवज़ा मिला।
- पहल असंगठित कामगार कांग्रेस जिलाध्यक्ष मुख्तार आलम ने की।
- मृतक दंपति के तीन छोटे बच्चे अनाथ हो चुके हैं।
- 70 वर्षीय दादी पर बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी है।
गुमला जिले के सिसई प्रखंड की सोगरा डाड़टोली पंचायत में सात महीने पहले घटी एक दर्दनाक वज्रपात की घटना ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया था। इस हादसे में एक ही परिवार के पति–पत्नी की मौके पर ही मौत हो गई थी, जिसके बाद उनके तीन छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो गए थे। लंबे समय तक सरकारी मुआवज़ा नहीं मिलने के कारण परिवार बेहद दयनीय स्थिति में जीवन यापन कर रहा था।
इस बीच असंगठित कामगार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष एवं 20 सूत्री सदस्य मुख्तार आलम की पहल ने पीड़ित परिवार के लिए उम्मीद की किरण जलाई। उनकी सक्रियता और प्रशासन से समन्वय के बाद आखिरकार सात महीने के इंतज़ार के बाद आश्रित परिवार को 4 लाख रुपये की मुआवज़ा राशि प्राप्त हुई।
वज्रपात की वह भयावह घटना
यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना लगभग सात माह पूर्व की है। सोगरा डाड़टोली निवासी हरकमेन झोरा और उनकी पत्नी सुको देवी मछली मारने के लिए गांव के पास गए हुए थे। इसी दौरान अचानक मौसम ने करवट ली और तेज बारिश शुरू हो गई। आसमान में बिजली कड़कने लगी और बादलों की तेज गर्जना के बीच अचानक वज्रपात हुआ।
इस वज्रपात की चपेट में आकर हरकमेन झोरा और सुको देवी की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। एक ही पल में पूरा परिवार उजड़ गया और गांव में शोक की लहर दौड़ गई।
तीन मासूम और 70 वर्षीय दादी पर टूटा दुखों का पहाड़
पति–पत्नी की मौत के बाद उनके तीन छोटे बच्चे पूरी तरह अनाथ हो गए। बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उनकी 70 वर्षीय बुजुर्ग दादी पर आ गई, जो खुद उम्र और कमजोरी के कारण काम करने में असमर्थ होती जा रही हैं। बावजूद इसके, दादी रेजा-कुली और मजदूरी जैसे छोटे-मोटे काम कर किसी तरह बच्चों का पेट पाल रही हैं।
परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई लगभग ठप हो चुकी है। स्कूल जाने की उम्र में बच्चे रोजमर्रा की जरूरतों और जीवन संघर्ष से जूझने को मजबूर हैं। न तो उनके पास नियमित भोजन की व्यवस्था है और न ही शिक्षा का समुचित साधन।
मुख्तार आलम की पहल बनी सहारा
इस पीड़ादायक स्थिति की जानकारी जब असंगठित कामगार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष मुख्तार आलम को मिली, तो उन्होंने इसे गंभीरता से लिया। करीब एक माह पूर्व वे स्वयं सोगरा डाड़टोली पहुंचे और पीड़ित परिवार से मुलाकात की। उन्होंने बच्चों और उनकी दादी की व्यथा सुनी और मौके पर ही ठंड के मौसम को देखते हुए उन्हें गर्म कपड़े उपलब्ध कराए।
मुख्तार आलम ने प्रशासन से संपर्क कर मुआवज़ा मामले को आगे बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप सात माह से लंबित 4 लाख रुपये की सहायता राशि आखिरकार परिवार के खाते में पहुंच सकी।
मुख्तार आलम ने कहा:
“यह परिवार बेहद कठिन हालात में जी रहा है। प्रशासन की जिम्मेदारी है कि ऐसी आपदाओं में पीड़ितों को समय पर सहायता मिले। मैं आगे भी इस परिवार को हरसंभव मदद दिलाने का प्रयास करूंगा।”
आगे भी मदद का आश्वासन
मुख्तार आलम ने सिर्फ मुआवज़ा दिलाने तक ही सीमित न रहते हुए परिवार को आगे भी सहयोग का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही अधिकारियों से बात कर मृत पति के नाम पर शेष मुआवज़ा, आवास योजना के तहत घर और बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था कराने का प्रयास करेंगे।
उनका कहना है कि समाज और सरकार दोनों की जिम्मेदारी है कि ऐसे अनाथ बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जाए, ताकि वे अभाव में जीवन न बिताएं।
मौके पर मौजूद लोग
इस दौरान कई सामाजिक और कामगार नेता भी मौजूद रहे, जिनमें महताब शेख, विशेश्वर मुंडा, मंगलेश्वर उरांव, इमरोज अंसारी, बलका भगत सहित अन्य लोग शामिल थे। सभी ने एकमत से पीड़ित परिवार को आगे भी सहयोग देने की बात कही।
न्यूज़ देखो: संवेदनशील पहल की मिसाल
यह मामला दर्शाता है कि यदि जनप्रतिनिधि और सामाजिक संगठन सक्रिय हों, तो व्यवस्था की सुस्ती के बावजूद पीड़ितों को न्याय मिल सकता है। वज्रपात जैसी आपदाओं में समय पर मुआवज़ा देना प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है। ऐसे मामलों से सीख लेकर व्यवस्था को और संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
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आपदा किसी एक परिवार की नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी होती है। यदि आप भी जरूरतमंदों की मदद करना चाहते हैं, तो आगे आएं और सहयोग का हाथ बढ़ाएं।
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