
#हुसैनाबाद #नगर_पंचायत : छठ बीत गया, पर लाइटें अंधेरे में — स्काइलिफ्टर “गैरेज विश्राम” पर और जनता के सब्र की परीक्षा जारी
- हुसैनाबाद नगर पंचायत में 150 नई लाइटें मंगवाई गईं, लेकिन अधिकांश अब तक नहीं लग पाईं।
- छठ पर्व खत्म हो गया, पर स्काइलिफ्टर वाहन 24 अक्टूबर से ही “गैरेज विश्राम” पर है।
- कर्मचारी बोले — गाड़ी खराब है, जनता बोली — नीयत खराब है।
- पूर्व वार्ड पार्षद अजय प्रसाद गुप्ता ने नगर पंचायत पर लापरवाही और मनमानी का आरोप लगाया।
- नागरिकों ने कहा — “नगर पंचायत में हर काम का जवाब तैयार है — गाड़ी खराब, मशीन खराब या कर्मी व्यस्त।”
छठ पूजा जैसे लोक आस्था के महापर्व में जहां घाटों को जगमगाने की उम्मीद थी, वहीं हुसैनाबाद नगर पंचायत के क्षेत्र में अंधेरा ही प्रमुख मेहमान बना रहा। नगर प्रशासन की उदासीनता और कार्यप्रणाली की सुस्ती अब जनता के धैर्य की सीमा पार कर चुकी है। अधिकारी लाइट लगाने का दावा करते रहे, पर सड़कों और घाटों पर अंधेरा ही शासन की असली तस्वीर पेश कर रहा था।
लाइटें आईं लेकिन उजाला नहीं आया
हुसैनाबाद अनुमंडल पदाधिकारी ओमप्रकाश गुप्ता के निर्देश पर नगर पंचायत ने 150 नई स्ट्रीट लाइटें मंगवाई थीं, ताकि अर्घ्य से पहले पूरा शहर रोशनी में नहा सके। लेकिन अफसोस, ये लाइटें अब तक गोदाम की दीवारों से ही चमक रही हैं।
जैसे ही नए कार्यपालक पदाधिकारी ने योगदान दिया, लाइट बदलने और लगाने की गति ऐसी धीमी हो गई मानो किसी ने “स्लो मोशन” बटन दबा दिया हो। जनता अब यह समझ नहीं पा रही कि यह लाइट परियोजना है या किसी योग शिविर का ध्यान अभ्यास।
नगर पंचायत का स्काइलिफ्टर वाहन 24 अक्टूबर से ही “गैरेज विश्राम” पर है। यानी गाड़ी आराम कर रही है, लेकिन जनता अंधेरे में सजा भुगत रही है। पूछने पर जवाब मिलता है — “गाड़ी खराब है, क्या करें?” यह जवाब अब नगर पंचायत के लाइट इंस्पेक्टर सुधांशु तिवारी की पहचान बन गया है।
बहानों की राजनीति और अंधेरे का प्रशासन
नगर पंचायत की कहानी अब विकास से नहीं, “खराब गाड़ी, अधूरा काम और कल का वादा” से जुड़ गई है। कभी जेसीबी खराब होती है, तो कभी स्काइलिफ्टर।
जनता अब पूछ रही है — “क्या नगर पंचायत में कोई चीज सही भी रहती है?”
पूर्व वार्ड पार्षद सह भाजपा नेता अजय प्रसाद गुप्ता ने कहा: “जमुहरी माई छठ घाट की सफाई, समतलीकरण और लाइट व्यवस्था के लिए मैंने कई बार नगर पंचायत से बात की, लेकिन हर बार ड्राइवर या मशीन की बीमारी आड़े आ गई। नगर पंचायत में बोर्ड नहीं होने के कारण कर्मी बेलगाम हो गए हैं — जैसे कर्मियों की अपनी सरकार है और हर बहाना उनका संविधान।”
उनका यह बयान जनता की नाराजगी को शब्द देता है। दशहरा से लेकर छठ तक नगर पंचायत के दफ्तर में “कल करेंगे, कल लगाएंगे” की गूंज ऐसी रही जैसे किसी मंदिर में आरती चल रही हो।
जनता ने खुद जगमगाया शहर
जब नगर पंचायत ने घाटों और सड़कों पर उजाला नहीं फैलाया, तब स्थानीय लोगों ने खुद अपने प्रयासों से घाटों को रोशन किया।
अंबेडकर चौक, पुरानी बाजार, मकबरा रोड, रविदास नगर, मिर्जापुर रोड — हर जगह लोगों ने झालरें और बल्ब लगाकर श्रद्धा का उजाला बिखेरा। यह दृश्य न सिर्फ प्रशासनिक असफलता का प्रतीक था बल्कि नागरिक जागरूकता का भी उदाहरण बन गया।
अब सवाल यह उठ रहा है कि जब त्योहारों के मौके पर भी नगर पंचायत जनता को उजाला नहीं दे सकती, तो उसका अस्तित्व आखिर किसलिए है? क्या केवल बहाने बनाने और बजट दिखाने के लिए?
प्रशासनिक नींद में लिपटा नगर पंचायत
लोग अब व्यंग्य में कह रहे हैं कि शायद नगर पंचायत का स्काइलिफ्टर अब अगली दिवाली पर ही “ध्यानमग्न” अवस्था से बाहर आएगा।
नगर पंचायत के कर्मियों के लिए “गाड़ी खराब” अब केवल वाक्य नहीं, बल्कि कार्यसंस्कृति का हिस्सा बन गया है।
जनता उम्मीद कर रही है कि कोई अधिकारी इस सुस्ती को तोड़ेगा, पर फिलहाल नगर पंचायत का जवाब वही पुराना — “गाड़ी खराब है, साहब।”
न्यूज़ देखो: अंधेरे में रोशनी तलाशता हुसैनाबाद
यह कहानी केवल एक नगर पंचायत की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की है जहाँ जवाबदेही से ज्यादा बहाने चलन में हैं। छठ जैसे महापर्व में जब जनता को रोशनी की जरूरत थी, तब प्रशासन “आराम मोड” में था।
यह प्रशासनिक लापरवाही सिर्फ अंधेरा नहीं फैलाती, बल्कि जनता के विश्वास को भी बुझा देती है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
अब वक्त है अंधेरों से जवाब मांगने का
हुसैनाबाद की जनता ने एक बार फिर दिखा दिया कि जब व्यवस्था सो जाती है, तो नागरिकता जाग उठती है।
अब जरूरत है कि नगर पंचायत खुद को सुधारने की बजाय जनता से माफी मांगे और जिम्मेदारी निभाए।
हर नागरिक को यह अधिकार है कि उसका शहर उजाला देखे — यह हक किसी बहाने से छीनने नहीं दिया जा सकता।
सजग बनें, सवाल उठाएं।
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