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महुआडांड में बैगई जमीन विवाद पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग सख्त, 15 दिन में उपायुक्त से मांगा जवाब

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#महुआडांड #जनजाति_विवाद : अम्बवाटोली की बैगई जमीन पर अवैध कब्जे की शिकायत पर आयोग ने लिया संज्ञान, लातेहार प्रशासन से मांगी विस्तृत रिपोर्ट
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने बैगई जमीन विवाद पर लिया संज्ञान।
  • 15 दिन के भीतर लातेहार उपायुक्त से मांगा जवाब।
  • आयोग ने चेताया — जवाब न मिलने पर समन जारी किया जा सकता है।
  • कामेश्वर मुण्डा की याचिका पर आयोग ने की प्रारंभिक जांच।
  • ईसाई समर्थित सरना मंच पर आरोप, बैगई भूमि पर अवैध कब्जे का प्रयास।
  • सुलेमान बैगा ने जमीन कब्जे पर एफआईआर दर्ज कराने की मांग की थी।

लातेहार जिले के महुआडांड प्रखंड के ग्राम अम्बवाटोली में बैगई जमीन पर कथित अवैध कब्जे को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस मामले पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने गंभीर रुख अपनाते हुए लातेहार उपायुक्त से 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट तलब की है। आयोग ने कहा है कि यदि निर्धारित समय में जवाब नहीं मिलता, तो संविधान के अनुच्छेद 338 (क) के तहत आयोग सिविल न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग करते हुए संबंधित अधिकारियों को समन जारी कर सकता है।

आयोग ने लिया संज्ञान और मांगा जवाब

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने यह कार्रवाई अनुमंडल सह प्रखंड सरना समिति महुआडांड के अध्यक्ष कामेश्वर मुण्डा की याचिका पर की है। आयोग को 03 सितंबर 2025 को उनकी शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसमें कहा गया था कि अम्बवाटोली गांव स्थित बैगई जमीन पर ईसाई समर्थित सरना आदिवासी एकता विकास मंच द्वारा अवैध रूप से घेराबंदी की जा रही है और वहां सर्ना भवन निर्माण का प्रयास किया जा रहा है।

आयोग ने अपने पत्र में कहा है कि यह मामला गंभीर संवैधानिक और जनजातीय अधिकारों से जुड़ा है, इसलिए लातेहार उपायुक्त को 15 दिनों के भीतर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करनी होगी कि इस विवाद को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं।

क्या है पूरा मामला

महुआडांड के अम्बवाटोली में वन विभाग कार्यालय के सामने स्थित खाता संख्या 295, प्लॉट संख्या 244, रकबा 2.40 एकड़ भूमि, जो मूल रूप से तेतरी बैगाईन पति मेघु बैगा के नाम दर्ज है, उसी पर यह विवाद खड़ा हुआ है। स्थानीय बैगा पुरोहित सुलेमान बैगा ने थाने में आवेदन देकर आरोप लगाया था कि कुछ लोग जबरन उनकी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।

सुलेमान बैगा ने अपने आवेदन में कहा कि वे पिछले 40 वर्षों से हिंदू रीतिरिवाज के अनुसार पूजा-पाठ और होलिका दहन करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ व्यक्तियों — विजय नगेसिया, विनोद उरांव, प्रदीप उरांव और अन्य — द्वारा जबरन घेराबंदी और निर्माण का प्रयास किया जा रहा है।

सुलेमान बैगा ने इस संबंध में एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन प्रशासन द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। उल्टा प्रशासन ने धारा 107 के तहत कार्रवाई करते हुए बैगा और सरना समाज के लोगों पर ही स्थल पर जाने का प्रतिबंध लगा दिया। इस कार्रवाई से स्थानीय समाज में गहरा आक्रोश व्याप्त हुआ और हिंदू महासभा महुआडांड तथा सरना समाज के लोगों ने अनिश्चितकालीन बंद का आयोजन किया।

कामेश्वर मुण्डा ने क्या कहा

इस विवाद पर अनुमंडल सह प्रखंड सरना समिति महुआडांड के अध्यक्ष कामेश्वर मुण्डा ने कहा कि कुछ ईसाई समर्थित तत्वों द्वारा सर्ना आदिवासी एकता मंच के नाम पर इस जमीन को कब्जाने का प्रयास किया जा रहा है।

कामेश्वर मुण्डा ने कहा: “यह जमीन बैगई है, सरना स्थल नहीं। यह भूमि बैगा समाज को खेती-बारी और भूत पूजा के लिए दी गई थी। आज कुछ लोग धर्मांतरित समुदाय के इशारे पर इसे कब्जाना चाहते हैं।”

उन्होंने बताया कि अम्बवाटोली का मुख्य बैगा सुलेमान भुईहर (मुण्डा) हैं, जो पिछले चार दशकों से धार्मिक कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2024 से स्थिति तब बिगड़ी जब बैगा का भाई अल्बर्ट आईन्द ने मिशनरी समर्थित संस्था को यह भूमि अपनी पत्नी के कहने पर सौंप दी और उस पर घेराबंदी का कार्य प्रारंभ हुआ।

कामेश्वर मुण्डा ने आगे कहा: “जब हमने स्थानीय प्रशासन को कार्य रोकने का आवेदन दिया तो हमें ही 107 का आरोपी बना दिया गया। हमें स्थल पर जाने से रोका गया। इस अन्याय के खिलाफ ही हमने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को पत्र भेजा।”

प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल

स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन द्वारा निष्पक्ष कार्रवाई नहीं की जा रही। पहले पक्ष को सुनने की बजाय उल्टे उन्हीं पर कार्रवाई की गई। आयोग द्वारा नोटिस भेजे जाने के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि मामले की निष्पक्ष जांच होगी और जनजातीय भूमि की रक्षा सुनिश्चित की जाएगी।

न्यूज़ देखो: जनजातीय भूमि संरक्षण की परीक्षा

यह विवाद केवल महुआडांड का नहीं, बल्कि झारखंड में जनजातीय भूमि संरक्षण से जुड़ी बड़ी चुनौती को उजागर करता है। संविधान की मंशा के अनुसार जनजातीय भूमि पर बाहरी या धार्मिक प्रभाव से कब्जा जनजातीय अस्मिता पर सीधा प्रहार है। आयोग का त्वरित संज्ञान इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन प्रशासनिक निष्पक्षता इस मामले की सच्ची परीक्षा होगी।

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जनजातीय अधिकारों की रक्षा में जागरूकता ही शक्ति

झारखंड की मिट्टी और संस्कृति जनजातीय अस्मिता से जुड़ी है। ऐसे में समाज के हर वर्ग को अपने अधिकारों और विरासत की रक्षा के लिए सजग रहना होगा। किसी भी विवाद या अन्याय पर चुप रहने की बजाय आवाज उठाना जरूरी है। अपनी राय कमेंट में साझा करें, इस खबर को आगे बढ़ाएं और जनजातीय अधिकारों की सुरक्षा में अपनी भूमिका निभाएं।

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