
#मेराल #बिजली_व्यवस्था : सरकारी अपीलों के उलट दिनदहाड़े जलती लाइटों से जनधन की बर्बादी।
गढ़वा जिले के मेराल फ्लाईओवर पर दोपहर 12:30 बजे स्ट्रीट लाइटों के जलते पाए जाने का मामला सामने आया है। एक ओर सरकार बिजली बचाने की अपील कर रही है, वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक स्थानों पर लाइटें दिन में जलती रहना प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है। यह स्थिति न केवल बिजली की बर्बादी का उदाहरण है, बल्कि सरकारी तंत्र की जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करती है। स्थानीय लोगों ने इस पर संबंधित विभाग से त्वरित कार्रवाई की मांग की है।
- मेराल फ्लाईओवर पर दोपहर 12:30 बजे जलती मिलीं स्ट्रीट लाइटें।
- सरकार द्वारा बिजली बचाने की अपील के बीच सामने आई विरोधाभासी स्थिति।
- जनधन की बर्बादी और ऊर्जा संसाधनों के दुरुपयोग का मामला।
- स्थानीय नागरिकों ने उठाई प्रशासनिक जवाबदेही की मांग।
- संबंधित विभाग की निगरानी व्यवस्था पर सवाल।
- उदाहरण पेश करने की जरूरत पर जनचर्चा तेज।
गढ़वा जिले के मेराल प्रखंड में स्थित मेराल फ्लाईओवर पर दोपहर के समय जलती हुई स्ट्रीट लाइटों का दृश्य सामने आने के बाद स्थानीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। यह घटना ऐसे समय पर सामने आई है, जब सरकार लगातार आम नागरिकों से बिजली की बचत करने, अनावश्यक लाइट और उपकरण बंद रखने तथा ऊर्जा संरक्षण में सहयोग करने की अपील कर रही है। इसके बावजूद सार्वजनिक स्थान पर दिनदहाड़े स्ट्रीट लाइटों का जलते रहना कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि दोपहर 12:30 बजे, जब तेज धूप में दृश्यता पूरी तरह स्पष्ट होती है, उस समय स्ट्रीट लाइटों का जलना न केवल अनावश्यक है, बल्कि यह सीधे तौर पर बिजली की खुली बर्बादी को दर्शाता है। नागरिकों ने इसे प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही और निगरानी की कमी का परिणाम बताया है।
सरकारी अपील और जमीनी हकीकत में अंतर
राज्य सरकार और बिजली विभाग समय-समय पर ऊर्जा संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान चलाते रहे हैं। आम जनता से अपील की जाती है कि वे गैर-जरूरी बिजली उपकरण बंद रखें, ताकि बिजली संकट से निपटा जा सके और राजस्व पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। लेकिन मेराल फ्लाईओवर पर सामने आई यह तस्वीर सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच के अंतर को उजागर करती है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जब सरकारी विभाग खुद नियमों का पालन नहीं करेंगे, तो आम जनता से अपेक्षा करना कितना उचित है। लोगों ने सवाल उठाया कि क्या स्ट्रीट लाइटों के स्वचालित सेंसर खराब हैं या फिर संबंधित विभाग की ओर से नियमित निरीक्षण नहीं किया जा रहा।
जनधन की बर्बादी का मुद्दा
दिन में जलती स्ट्रीट लाइटें केवल तकनीकी चूक नहीं, बल्कि जनधन की बर्बादी का सीधा उदाहरण हैं। बिजली का भुगतान अंततः सरकारी खजाने से होता है, जो जनता के टैक्स से आता है। ऐसे में इस तरह की लापरवाही आर्थिक दृष्टि से भी नुकसानदायक है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि यदि यही स्थिति रोजाना बनी रहती है, तो साल भर में हजारों यूनिट बिजली व्यर्थ चली जाती होगी। यह न केवल ऊर्जा संसाधनों पर दबाव बढ़ाता है, बल्कि बिजली आपूर्ति व्यवस्था को भी प्रभावित करता है।
जिम्मेदार विभाग पर उठे सवाल
मेराल फ्लाईओवर की स्ट्रीट लाइटों की देखरेख किस विभाग के जिम्मे है, इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। नागरिकों का कहना है कि चाहे यह नगर पंचायत, पथ निर्माण विभाग या विद्युत विभाग के अंतर्गत आता हो, जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
स्थानीय लोगों ने मांग की है कि संबंधित विभाग यह स्पष्ट करे कि स्ट्रीट लाइटें दिन में क्यों जल रही थीं। साथ ही यह भी बताया जाए कि क्या यह एक दिन की चूक थी या नियमित रूप से ऐसी स्थिति बनी रहती है।
जनता की प्रतिक्रिया
मेराल के स्थानीय निवासी इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर भी अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। कई लोगों ने इसे प्रशासनिक उदासीनता का प्रतीक बताया है। नागरिकों का कहना है कि सरकार को पहले अपने तंत्र को दुरुस्त करना चाहिए, ताकि जनता को सही संदेश जाए।
एक स्थानीय नागरिक ने कहा:
“अगर सरकार सच में बिजली बचाना चाहती है, तो सबसे पहले अपने विभागों को जवाबदेह बनाना होगा।”
समाधान की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का समाधान तकनीकी और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर संभव है। स्ट्रीट लाइटों में ऑटोमैटिक टाइमर या फोटो सेंसर लगाए जाएं, ताकि दिन में लाइटें अपने आप बंद हो जाएं। साथ ही नियमित निरीक्षण और जवाबदेही तय की जाए।
इसके अलावा, यदि किसी कर्मचारी या एजेंसी की लापरवाही सामने आती है, तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।


न्यूज़ देखो: जवाबदेही के बिना अपील अधूरी
मेराल फ्लाईओवर पर दिन में जलती स्ट्रीट लाइटें यह दिखाती हैं कि सरकारी अपीलें तभी प्रभावी होंगी, जब विभाग खुद उदाहरण पेश करेंगे। ऊर्जा संरक्षण केवल भाषणों से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई और निगरानी से संभव है। अब देखना यह है कि संबंधित विभाग इस लापरवाही पर क्या कदम उठाता है और क्या व्यवस्था में सुधार होता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
जागरूक नागरिक, जिम्मेदार प्रशासन
ऊर्जा संरक्षण केवल सरकार या विभाग की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज की साझा जिम्मेदारी है।
लेकिन इसकी शुरुआत प्रशासन को खुद करनी होगी।
अगर आप भी ऐसी किसी लापरवाही के गवाह बनते हैं, तो आवाज उठाना जरूरी है।
अपनी राय कमेंट में साझा करें, खबर को आगे बढ़ाएं और जिम्मेदार शासन के लिए जागरूकता फैलाएं।





