
#देवघर #श्रावणी_मेला : शिवलोक परिसर में भक्तों को मिल रहा बारह ज्योतिर्लिंगों का दिव्य साक्षात्कार — टूरिज्म डिपार्टमेंट की पहल को मिल रही सराहना
- श्रावणी मेले में लाखों कांवरियों का उमड़ा जनसैलाब, बाबा बैद्यनाथ पर कर रहे जलार्पण
- शिवलोक परिसर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की झांकी बना भक्तों के आकर्षण का केंद्र
- पर्यटन विभाग द्वारा लगाए गए प्रदर्शनी शिविर में हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु कर रहे दर्शन
- रामेश्वरम से काशी विश्वनाथ तक के मंदिरों का किया गया है सजीव चित्रण
- कांवर यात्रा को तप, श्रद्धा और शिव-समर्पण का प्रतीक बताया गया है
- शिव पुराण में ज्योतिर्लिंगों का आध्यात्मिक महत्व और प्राचीन कथाएं दर्शकों को कर रही हैं भाव-विभोर
श्रद्धा और शिवभक्ति से सराबोर देवघर
झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथधाम, जो कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, सावन महीने में श्रावणी मेले के दौरान शिवभक्तों से गुलजार रहता है। इस वर्ष भी, लाखों कांवरिये हरिद्वार, सुल्तानगंज, रांची और बिहार जैसे राज्यों से गंगाजल लेकर बैद्यनाथधाम पहुंच रहे हैं और बाबा पर जलार्पण कर रहे हैं।
शहर का वातावरण शिव भक्ति, भजन, बम बम भोले के जयघोष और भक्तों के उल्लास से पूरी तरह रम गया है। इस बीच, एक नई पहल के तहत शिवलोक परिसर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की झांकी कांवरियों के लिए एक आध्यात्मिक वरदान साबित हो रही है।
शिवलोक परिसर: जब एक स्थान पर मिले 12 ज्योतिर्लिंगों का अनुभव
झारखंड पर्यटन विभाग ने राजकीय श्रावणी मेला 2025 के अवसर पर एक अनोखा प्रयोग किया है। शिवलोक परिसर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के सजीव चित्रण, मॉडल और विवरण के साथ एक प्रदर्शनी शिविर लगाया गया है। यहां श्रद्धालु नागेश्वर (गुजरात), रामेश्वरम (तमिलनाडु), घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र), सोमनाथ, श्रीशैलम, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, महाकालेश्वर, भीमाशंकर और देवघर के बैद्यनाथधाम का एक साथ दर्शन कर पा रहे हैं।
पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने बताया: “हमारा उद्देश्य है कि जो भक्त किसी कारणवश बारहों ज्योतिर्लिंगों की यात्रा नहीं कर सकते, उन्हें यहां एक ही स्थान पर उनका दिव्य अनुभव कराया जाए।”
शिव पुराण और पौराणिक कथाओं की गूंज
प्रदर्शनी में केवल स्थापत्य या मॉडल ही नहीं, बल्कि शिव पुराण के संदर्भ, दिव्य कथाएं और प्रसिद्ध घटनाओं का वर्णन भी किया गया है। इसमें रावण द्वारा कैलाश उठाने का प्रयास, चंद्रदेव का तप, राम द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना, पांडवों की केदारनाथ यात्रा जैसी कथाओं को रोचक तरीके से चित्रित किया गया है।
एक श्रद्धालु ने कहा: “यहां आकर हमें शिव महिमा का वो ज्ञान मिला, जो शायद किताबों में पढ़ने से नहीं मिलता। ऐसा लगा जैसे 12 तीर्थ एक साथ साक्षात सामने खड़े हैं।”
कांवर यात्रा: श्रद्धा, तप और समर्पण की परंपरा
कांवर यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक दिव्य अनुभव, सामूहिक साधना और आस्था का प्रतीक है। गंगाजल लेकर पैदल चलकर शिवलिंग पर जल चढ़ाना, श्रद्धालुओं के तप, समर्पण और भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है।
टूरिज्म डिपार्टमेंट के अनुसार, “यह परंपरा सदियों पुरानी है, और हर वर्ष इसमें शामिल होने वाले भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है। श्रद्धालु न केवल तीर्थ यात्रा करते हैं, बल्कि शिव की लीलाओं और पौराणिक कथाओं से भी जुड़ते हैं, जिससे उनकी आस्था और गहरी होती है।”
भक्ति के संग पर्यटन को भी बढ़ावा
इस तरह के आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को संबल देते हैं, बल्कि राज्य के धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा देते हैं। देवघर आने वाले भक्तों को यह अनुभव मिलता है कि वे केवल पूजा ही नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक यात्रा पर आए हैं।
यह आयोजन झारखंड को धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर और सशक्त करता है, जिससे स्थानीय व्यवसाय, होटल, भोजनालय, हस्तशिल्प और अन्य सेवाओं को भी लाभ होता है।
न्यूज़ देखो: शिवभक्ति और सांस्कृतिक समृद्धि का संगम
न्यूज़ देखो इस भक्ति, आस्था और सांस्कृतिक प्रदर्शनी को केवल एक मेला नहीं, बल्कि सजग शिव चेतना का उदाहरण मानता है। इस पहल से ना केवल भक्तों को आध्यात्मिक लाभ, बल्कि देवघर और झारखंड को धार्मिक पहचान मिल रही है। ऐसे आयोजनों की सफलता समाज के जागरूक और सहभागी नागरिकों का प्रमाण है।
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