Palamau

सुआ स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय में शिक्षकों की कमी, आजसू छात्र नेता राणा हिमांशु सिंह ने दी चेतावनी

#मेदिनीनगर #शिक्षा_संकट : सात वर्षों से बिना स्थायी शिक्षकों के चल रहे आवासीय विद्यालय पर उठे गंभीर सवाल।

पलामू के मेदिनीनगर स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय सुआ में अब तक शिक्षकों की नियमित बहाली नहीं होने से शैक्षणिक व्यवस्था पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। वर्ष 2017–18 के आसपास स्थापित यह विद्यालय आज भी प्रतिनियुक्ति के भरोसे संचालित हो रहा है। यहां पढ़ने वाले अधिकांश छात्र अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग से हैं। आजसू छात्र नेता ने जिला शिक्षा पदाधिकारी से अविलंब अंशकालीन शिक्षकों की बहाली की मांग की है।

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  • 7–8 वर्षों से बिना स्थायी शिक्षक के संचालित हो रहा विद्यालय।
  • कक्षा 1 से 10 तक की पढ़ाई, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी।
  • 98 प्रतिशत छात्र ST, SC और OBC वर्ग से संबंधित।
  • कई छात्र अनाथ या एकल अभिभावक पर आश्रित।
  • आजसू छात्र नेता राणा हिमांशु सिंह ने आंदोलन की चेतावनी दी।

मेदिनीनगर सदर प्रखंड के सुआ क्षेत्र में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय की स्थिति लगातार चिंता का विषय बनती जा रही है। विद्यालय की स्थापना को लगभग सात से आठ वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज तक न तो पूर्णकालिक और न ही अंशकालिक शिक्षकों की नियमित बहाली हो सकी है। वर्तमान में यह विद्यालय केवल प्रतिनियुक्त शिक्षकों के सहारे संचालित हो रहा है, जिससे पठन-पाठन की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ रहा है।

विद्यालय में कक्षा 1 से लेकर कक्षा 10 तक की पढ़ाई होती है। इसके बावजूद विषयवार शिक्षकों की उपलब्धता नहीं होने से विद्यार्थियों को समुचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आवासीय विद्यालयों में नियमित शिक्षकों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यहां पढ़ने वाले छात्र सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं।

वंचित वर्ग के छात्रों का भविष्य दांव पर

इस विद्यालय में अध्ययनरत लगभग 98 प्रतिशत छात्र अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इनमें कई बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता का निधन हो चुका है या जो केवल एक अभिभावक के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसे विद्यार्थियों के लिए आवासीय विद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला सहारा भी होता है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह के विद्यालयों का उद्देश्य ही सामाजिक रूप से पिछड़े और कमजोर वर्ग के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है। लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण यही उद्देश्य अधूरा रह गया है, जो विद्यार्थियों के शिक्षा के मौलिक अधिकार पर सीधा प्रश्न खड़ा करता है।

आजसू छात्र नेता की कड़ी मांग

इस गंभीर मुद्दे को लेकर आजसू छात्र नेता राणा हिमांशु सिंह ने पलामू जिला शिक्षा पदाधिकारी से मुलाकात कर लिखित मांग रखी है। उन्होंने कहा कि सुआ क्षेत्र के योग्यताधारी स्थानीय युवाओं, पूर्व में विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों या वर्तमान में कार्य कर रहे शिक्षकों को प्राथमिकता देते हुए अविलंब अंशकालीन शिक्षकों की बहाली की जाए।

राणा हिमांशु सिंह ने कहा:

“यह विद्यालय गरीब, वंचित और अनाथ बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ है। यदि यहां शिक्षकों की बहाली नहीं होती है तो बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।”

आंदोलन की चेतावनी

आजसू छात्र नेता ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि इस मांग पर शीघ्र सकारात्मक कार्रवाई नहीं की गई, तो आजसू पार्टी पूर्ण आंदोलन करेगी। उन्होंने कहा कि आंदोलन की संपूर्ण जिम्मेदारी पलामू जिला शिक्षा पदाधिकारी, डीएससी और विद्यालय प्रबंधन समिति की होगी।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विभागीय स्तर पर लापरवाही के कारण वर्षों से यह विद्यालय उपेक्षा का शिकार बना हुआ है, जबकि सरकार द्वारा आवासीय विद्यालयों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

अब तक इस मुद्दे पर जिला शिक्षा विभाग की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। स्थानीय अभिभावकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि समय रहते शिक्षकों की बहाली नहीं की गई, तो बच्चों का शैक्षणिक नुकसान अपूरणीय होगा।

न्यूज़ देखो: शिक्षा व्यवस्था में सिस्टम की बड़ी चूक

सुआ स्थित यह आवासीय विद्यालय सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही का उदाहरण बनता जा रहा है। वंचित वर्ग के बच्चों के लिए बने विद्यालय में वर्षों से शिक्षकों की बहाली न होना प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है। अब देखना होगा कि आंदोलन की चेतावनी के बाद शिक्षा विभाग कितनी गंभीरता दिखाता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी

शिक्षा केवल सुविधा नहीं, बल्कि हर बच्चे का अधिकार है। खासकर उन बच्चों के लिए, जिनके पास संसाधन और सहारा सीमित है। ऐसे में समाज और प्रशासन दोनों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं, अपनी राय साझा करें।
खबर को अधिक लोगों तक पहुंचाएं और शिक्षा के अधिकार की इस लड़ाई को मजबूत बनाएं।

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