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गढ़वा में ‘108’ एंबुलेंस सेवा खुद बीमार — सड़क पर खड़ी गाड़ियां बनीं मरीजों की जान की दुश्मन

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#गढ़वा #स्वास्थ्यसंकट — तकनीकी खराबी और लापरवाही ने आपातकालीन सेवाओं को बनाया मज़ाक

  • गढ़वा जिले में 28 में से 12 एंबुलेंस लंबे समय से खराब, मरीजों को नहीं मिल रही समय पर सेवा
  • झूरा गांव में सड़क किनारे खड़ी मिली 108 एंबुलेंस, हालात की भयावह तस्वीर
  • रेफर मरीजों को पलामू ले जाते समय बार-बार हो रही गाड़ियों की खराबी
  • मुख्य सचिव के 15 दिन में सुधार के आश्वासन पर अब तक नहीं हुआ कोई अमल
  • समान फाउंडेशन की निष्क्रियता से बढ़ा जन आक्रोश, प्रशासनिक चुप्पी सवालों के घेरे में
  • स्थानीय लोग बोले — ये सेवा नहीं, मौत की सवारी बन गई है अब

खराबियों में उलझा ‘108’ सिस्टम, मरीजों की जान पर बन आई

गढ़वा जिले की आपातकालीन एंबुलेंस सेवा ‘108’ खुद ही बीमार स्थिति में पहुंच चुकी हैजिले में कुल 28 एंबुलेंस तैनात हैं, लेकिन इनमें से 12 गाड़ियां लंबे समय से तकनीकी कारणों से खराब पड़ी हैं। सबसे अधिक दिक्कत तब सामने आती है जब किसी गंभीर मरीज को गढ़वा से पलामू या रांची रेफर किया जाता है, और रास्ते में ही एंबुलेंस बंद हो जाती है।

गढ़वा-मेदिनीनगर मार्ग पर जर्जर एंबुलेंस ने खोली हकीकत

हाल ही में गढ़वा-मेदिनीनगर रोड के झूरा गांव के पास एक एंबुलेंस सड़क किनारे लावारिस स्थिति में खड़ी मिली। यह केवल एक उदाहरण है, लेकिन पूरे सिस्टम की गंभीर खामियों की गवाही देता है। कई बार एंबुलेंस रास्ते में खराब हो जाती हैं, जिससे मरीजों को बीच सड़क पर तड़पते हुए घंटों इंतजार करना पड़ता है। यह स्थिति आम हो चुकी है, और लोग अब इसे मौत की सवारी कहने लगे हैं।

प्रशासनिक घोषणाएं बनीं कागज़ी, समान फाउंडेशन की लापरवाही

मुख्य सचिव ने हाल में बयान दिया था कि 15 दिनों में सभी एंबुलेंसों की मरम्मत कर ली जाएगी। लेकिन समान फाउंडेशन, जो इस सेवा का संचालन करता है, ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। ऐसे में जनता के बीच प्रशासन और संबंधित एजेंसी की नीयत पर सवाल उठने लगे हैं

जमीनी हकीकत — न समय पर एंबुलेंस, न भरोसेमंद सेवा

ग्रामीण इलाकों से लेकर मुख्यालय तक हर जगह एंबुलेंस सेवा चरमराई हुई है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि आपात स्थिति में गाड़ी नहीं मिलती, और यदि मिल भी जाती है, तो रास्ते में बंद हो जाती है

“हमारे इलाके में एंबुलेंस सेवा का कोई भरोसा नहीं है, लोग अब निजी वाहन से मरीजों को ले जाने को मजबूर हैं,” — रंजीत तिवारी, ग्रामीण निवासी

“एक मरीज को पलामू ले जाते वक्त गाड़ी सड़क पर खराब हो गई, घंटों फंसे रहे — ये कैसी आपात सेवा है?” — आरती देवी, मरीज की परिजन

न्यूज़ देखो : स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरी पर हमारी पैनी नजर

स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवा पर जब व्यवस्था itself लाचार दिखे, तब सवाल उठाना ज़रूरी हैन्यूज़ देखो ने हमेशा प्रशासन को जगाने का प्रयास किया है — चाहे वो सड़कों की हालत हो, या आपातकालीन सेवाओं की लापरवाही। हमारी टीम आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर लगातार रिपोर्ट करती रहेगी।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

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