
#मेदिनीनगर #पेसा_कानून : आदिवासी स्वशासन और जमीनी लोकतंत्र की दिशा में ऐतिहासिक पहल।
मेदिनीनगर में कांग्रेस जिलाध्यक्ष बिमला कुमारी ने झारखंड सरकार द्वारा पेसा कानून को मंजूरी दिए जाने को ऐतिहासिक कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह फैसला आदिवासी समाज को उनके पारंपरिक अधिकार लौटाने और ग्रामसभा को वास्तविक शक्ति देने वाला है। पेसा कानून से जल, जंगल और जमीन पर समुदाय का नियंत्रण मजबूत होगा। यह निर्णय वर्षों से प्रतीक्षित स्वशासन की अवधारणा को व्यवहारिक रूप देता है।
- झारखंड गठबंधन सरकार द्वारा पेसा कानून को मिली मंजूरी।
- कांग्रेस जिलाध्यक्ष बिमला कुमारी ने बताया ऐतिहासिक और दूरगामी फैसला।
- ग्रामसभा को मिला जल, जंगल और जमीन पर निर्णायक अधिकार।
- बिना ग्रामसभा अनुमति भूमि अधिग्रहण और खनन पर रोक का प्रावधान।
- राजीव गांधी की पंचायती राज की कल्पना को बताया साकार।
- आदिवासी, दलित और ग्रामीण समाज के सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त।
झारखंड की राजनीति और सामाजिक संरचना में पेसा कानून को मंजूरी एक ऐसे मोड़ के रूप में देखी जा रही है, जिसका असर आने वाले वर्षों तक महसूस किया जाएगा। पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस जिलाध्यक्ष बिमला कुमारी ने कहा कि यह केवल एक कानूनी फैसला नहीं, बल्कि दशकों से हाशिये पर खड़े आदिवासी समाज के सम्मान और अधिकारों की पुनर्स्थापना है। उन्होंने इसे लोकतंत्र को नीचे तक मजबूत करने वाला ऐतिहासिक कदम बताया।
पेसा कानून और आदिवासी स्वशासन
बिमला कुमारी ने कहा कि पेसा कानून लागू होने के बाद झारखंड की जनजातियों और अनुसूचित जनजातियों को उनके पारंपरिक अधिकार विधिवत रूप से प्राप्त होंगे। जल, जंगल और जमीन जैसे संसाधनों पर अब समुदाय का निर्णायक नियंत्रण स्थापित होगा। ग्रामसभा की अनुमति के बिना किसी भी प्रकार का भूमि अधिग्रहण, खनन या प्राकृतिक संसाधनों का दोहन संभव नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि लंबे समय से आदिवासी समाज अपने ही इलाकों में फैसलों से बाहर रखा गया था। पेसा कानून इस स्थिति को बदलने का माध्यम बनेगा और गांव के स्तर पर ही निर्णय लेने की संस्कृति को मजबूत करेगा।
29 वर्षों का इंतजार और राजीव गांधी की सोच
कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने कहा कि यह क्षण इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि लगभग 29 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की परिकल्पना को साकार किया गया है। पंचायती राज व्यवस्था के जरिए गांवों को लोकतंत्र की असली इकाई बनाने की जो सोच उन्होंने रखी थी, उसे झारखंड की गठबंधन सरकार ने व्यवहारिक रूप दिया है।
उनके अनुसार, पेसा कानून केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि उस विचारधारा का विस्तार है, जिसमें सत्ता का केंद्रीकरण नहीं बल्कि विकेंद्रीकरण लोकतंत्र की आत्मा माना गया है।
कांग्रेस की विचारधारा और विकेंद्रीकरण
बिमला कुमारी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की राजनीति का मूल आधार हमेशा सत्ता का विकेंद्रीकरण रहा है। पार्टी का स्पष्ट विश्वास है कि निर्णय की ताकत राजधानी या सचिवालय में नहीं, बल्कि गांव और ग्रामसभा में होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि गरीब, आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों को शासन व्यवस्था में सीधी भागीदारी मिले, यही कांग्रेस की मूल नीति रही है। पेसा कानून इसी सोच का ठोस उदाहरण है, जो शासन और जनता के बीच की दूरी को कम करेगा।
केवल आदिवासियों तक सीमित नहीं प्रभाव
जिलाध्यक्ष ने यह भी स्पष्ट किया कि पेसा कानून का दायरा केवल आदिवासियों और अनुसूचित जनजातियों तक सीमित नहीं है। इसका प्रभाव अनुसूचित जातियों और ग्रामीण समाज के सभी वर्गों पर पड़ेगा।
ग्रामसभा के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और विकास योजनाओं पर जनता की सीधी निगरानी सुनिश्चित होगी। इससे योजनाओं में पारदर्शिता बढ़ेगी और जवाबदेही तय होगी। उन्होंने कहा कि जब गांव खुद तय करेगा कि उसके लिए क्या जरूरी है, तभी विकास वास्तविक और टिकाऊ होगा।
विकास का नया मॉडल
बिमला कुमारी ने विश्वास जताया कि पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से झारखंड में विकास का एक नया मॉडल स्थापित होगा। यह मॉडल केवल आर्थिक विकास तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि प्रकृति संरक्षण, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक सहभागिता को साथ लेकर चलेगा।
उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की जीवनशैली प्रकृति के साथ संतुलन पर आधारित रही है। पेसा कानून इस संतुलन को बनाए रखने का संवैधानिक आधार देता है, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए संसाधन सुरक्षित रहेंगे।
जमीन पर लागू करना सबसे बड़ी चुनौती
कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने यह भी स्वीकार किया कि किसी भी कानून की सफलता उसके क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। पेसा कानून को जमीन पर उतारने के लिए प्रशासनिक इच्छाशक्ति, जागरूकता और सतत निगरानी की जरूरत होगी।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए झारखंड की गठबंधन सरकार को बधाई देती है और यह संकल्प दोहराती है कि पेसा कानून को पूरी ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ लागू कराने के लिए पार्टी लगातार संघर्ष और निगरानी की भूमिका निभाएगी।
न्यूज़ देखो: जमीनी लोकतंत्र की कसौटी
पेसा कानून को मंजूरी झारखंड में जमीनी लोकतंत्र की बड़ी परीक्षा है। यह फैसला बताता है कि शासन व्यवस्था गांव-केंद्रित सोच की ओर लौट रही है। अब सवाल यह है कि प्रशासन और राजनीतिक दल इसे कितनी गंभीरता से लागू करते हैं। यदि ग्रामसभा को वास्तविक अधिकार मिले, तो यह निर्णय ऐतिहासिक परिवर्तन का आधार बन सकता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
गांव से निकलेगा लोकतंत्र का असली स्वर
पेसा कानून हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की जड़ें गांव में हैं, न कि केवल सत्ता के गलियारों में। जब ग्रामसभा सशक्त होगी, तभी समाज संतुलित और न्यायपूर्ण बनेगा।
आज जरूरत है कि नागरिक इस कानून को समझें, इसके अधिकारों को जानें और ग्रामसभा में सक्रिय भागीदारी निभाएं। यही सहभागिता झारखंड को एक नई दिशा दे सकती है।
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