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झारखंड में सीएसआर फंड खर्च पर उठे सवाल — वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने मुख्य सचिव को पत्र लिख कर मांगी पारदर्शिता

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रांची #वित्त मंत्रालय : राज्य में सीएसआर फंड के दुरुपयोग पर सरकार गंभीर — मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने बैंकों के खर्च पर उठाए सवाल
  • सीएसआर फंड का उपयोग गैर-प्राथमिक कार्यों में हो रहा है।
  • कुछ बैंकों ने मात्र स्कूल बैग, भोजन पैकेट, शॉल आदि बांटकर औपचारिकता पूरी की।
  • एचडीएफसी बैंक ने दो वर्षों में 148 करोड़ का खर्च दिखाया, लेकिन कार्यक्षेत्र स्पष्ट नहीं।
  • मंत्री ने की मांग — मुख्यमंत्री की स्वीकृति के बिना न हो कोई सीएसआर व्यय।
  • हिमाचल मॉडल अपनाने की सिफारिश — खर्च से पहले सीएम के समक्ष प्रस्ताव पेश हो।
  • बैंकों को 24 जिलों में एक-एक पिछड़ा गांव गोद लेने का सुझाव।

सीएसआर फंड का उद्देश्य और असली तस्वीर

झारखंड सरकार के वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राधाकृष्ण किशोर ने राज्य में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत खर्च होने वाली राशि के गैर-जरूरी उपयोग पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर यह आग्रह किया है कि सीएसआर फंड की पारदर्शी निगरानी प्रणाली बनाई जाए ताकि इसका सही उपयोग सुनिश्चित हो सके।

मंत्री ने पत्र में कहा है कि सीएसआर का मूल उद्देश्य महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण विकास, जल संचयन, आपदा राहत और कला-संस्कृति के संरक्षण जैसे सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में विकास करना है। लेकिन राज्य के कई बैंक इन उद्देश्यों से भटक कर दिखावे के कार्यों में राशि खर्च कर रहे हैं।

दिखावे की गतिविधियों पर करोड़ों का खर्च

वित्त मंत्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ बैंकों ने मात्र 1.5-2 लाख रुपये के स्कूल बैग, 2000 रुपये के भोजन पैकेट, और 22,000 रुपये के शॉल बांट कर अपनी सीएसआर जिम्मेदारी निभाई, जो कुपोषण और शिक्षा जैसे गंभीर मुद्दों के समाधान में अपर्याप्त है। उन्होंने यह भी बताया कि एक बैंक ने धनबाद पुलिस लाइन में 200 सीलिंग फैन और डीआरडीओ कार्यालय चतरा में आरओ कूलर लगाए हैं — जो सीएसआर की भावना के विपरीत है।

एचडीएफसी बैंक के सीएसआर खर्च पर सीधा सवाल

मंत्री ने विशेष रूप से एचडीएफसी बैंक का उल्लेख करते हुए कहा कि उसने वर्ष 2022-23 और 2023-24 में 148 करोड़ 16 लाख रुपये सीएसआर के तहत खर्च दिखाया है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि यह राशि किन क्षेत्रों में और कैसे खर्च की गई। उन्होंने इसे जांच का विषय बताते हुए गहन समीक्षा की मांग की है।

वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने लिखा: “सीएसआर फंड के नाम पर झारखंड में सिर्फ औपचारिकताएं निभाई जा रही हैं, जिससे ना तो विकास होता है और ना ही जनता को लाभ मिलता है।”

पिछड़े गांवों को गोद लेने की मांग

पत्र में मंत्री ने सुझाव दिया कि प्रत्येक बैंक को राज्य के सभी 24 जिलों में से एक-एक पिछड़ा गांव गोद लेना चाहिए और वहां शिक्षा, स्वास्थ्य, जलापूर्ति, महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में सीएसआर के पैसे खर्च करने चाहिए। इससे राज्य के समग्र विकास में मदद मिलेगी और जनता को वास्तविक लाभ मिलेगा।

हिमाचल मॉडल को झारखंड में लागू करने का आग्रह

फाइनेंस मिनिस्टर ने अपने पत्र में हिमाचल प्रदेश सरकार का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां सीएसआर प्रस्तावों को मुख्यमंत्री के समक्ष निर्णय हेतु प्रस्तुत किया जाता है, और सीएम की स्वीकृति के बाद ही राशि व्यय होती है। उन्होंने झारखंड में भी इसी तरह की व्यवस्था लागू करने का सुझाव दिया ताकि सीएसआर का दुरुपयोग रोका जा सके।

अनावश्यक खर्चों पर रोक लगाने की जरूरत

पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि कई बार राज्य सरकार के बजट से चल रही योजनाओं में भी सीएसआर राशि खर्च कर दी जाती है, जिससे दोहरे खर्च की स्थिति बन जाती है और वास्तविक जरूरतमंद क्षेत्रों की अनदेखी होती है। मंत्री ने इसे फिजूलखर्ची और प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण बताया।

न्यूज़ देखो: सीएसआर फंड की पारदर्शिता की मांग में सामने आई सच्चाई

यह रिपोर्ट यह दर्शाती है कि कैसे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, जो एक समर्पित सामाजिक विकास का साधन होना चाहिए, औपचारिकता और दिखावे में तब्दील हो रहा है। न्यूज़ देखो मांग करता है कि सरकार झारखंड में सीएसआर के उपयोग पर पारदर्शी और जवाबदेह तंत्र लागू करे, जिससे जनता को वास्तविक लाभ पहुंचे और बैंकों की भूमिका सिर्फ कागजों तक सीमित ना रहे।

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